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भारतः दंगों के बाद यौन हमलों के शिकार लोगों को सहायता

पीड़ित बदले के खौफ़ में जी रहे हैं, प्राधिकारियों को राहत एवं पुनर्वास योजना की रूपरेखा तैयार करने की आवश्यकता है।

(न्यूयॉर्क)- ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज कहा कि भारतसरकार को
पिछले महीने उत्तरी राज्य उत्तर प्रदेश में हुई साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान यौन हमलों और सामूहिक बलात्कार सहित सभी अपराधों की पूरी तरह जाँच करनी चाहिए।

प्राधिकारियों को तत्काल राहत, वापसी अथवा पुनर्वास की एक योजना भी तैयार करनी चाहिए और दंगों के कारण विस्थापित हुए लोगों के लिए मुआवज़े का प्रबंध करना चाहिए तथा जाँच एवं अभियोग लगाए जाने हेतु सुरक्षित माहौल का निर्माण करना चाहिए।

उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर जिले में सितंबर में हुई साम्प्रदायिक हिंसा के बाद, जिसमें 50से अधिक लोगों की जानें गईं और दसियों हज़ार लोग विस्थापित हुए, यौन हमले होने की खबरे सामने आने लगी हैं। कई लोग, जिनमें लड़कियाँ भी शामिल हैं, अब भी लापता हैं। अभी तक, उत्तर प्रदेश की स्‍थानीय पुलिस ने सामूहिक बलात्कार की पाँच शिकायतें और यौन उत्‍पीड़न के दो मामले दर्ज किए हैं।

दंगों से प्रभावित समुदायों से मुलाकात करनेवाले भारतीय कार्यकर्ताओं ने बताया है कि कई अन्य मुस्लिम महिलाएँ बलात्कार सहित अन्य प्रकार के यौन हमलों का शिकार हुई होंगी लेकिन उन्होंने बदले के भय, कलंक तथा सरकारी संस्‍थाओं में विश्वास न होने के कारण रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई है।इसकी वजह से उन्हें महत्‍वपूर्ण सेवाओं से वंचित रहना पड़ रहा है जिनमें मनोवैज्ञानिक परामर्श, कानूनी सहायता, आपातकालीन चिकित्सीय देखभाल और यौन हिंसा के प्रभावों से निपटने के लिए प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य सेवाएँ भी शामिल हैं।

ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुलीका कहना है, “उत्तर प्रदेश सरकार को तत्‍काल ऐसा वातावरण तैयार करना चाहिए कि पीड़ित स्वयं सामने आएँ और न्याय की मांग करें।”उन्होंने कहा, “साम्प्रदायिक हिंसा में बलात्कार पीड़ितों को सामने आने के लिए अपने भीतर आत्मविश्वास पैदा करने में समय लगता है और इसके परिणामस्वरूप वे मनोवैज्ञानिक, चिकित्सीय एवं अन्य प्रकार की सहायता से वंचित रह जाते हैं।”

सात सितंबर को एक हिंसात्मक झड़प के बाद जिसमें दो हिंदुओं तथा एक मुसलमान की मृत्यु हुई, मुज़फ्फरनगर में हिंदू और मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक हिंसा शुरू हो गई जो उत्तर प्रदेश के आसपास के अन्य जिलों में भी फैल गई। तथापि इस घटना ने मुसलमानों की ओर से संभावित हिंसा की अफवाहों को बल दिया। जाट समुदाय से जुड़े हिंदुओं ने एक विशाल जनसभा में राजनीतिक नेताओं के भड़काऊ भाषणों से उत्तेजित हो कर मुस्लिम समुदायों पर हमले करना आरंभ कर दिया।

हिंसा तीन दिन जारी रही, कर्फ्यू लगा दिया गया तथा कानून एवं व्यवस्था बहाल करने के लिए भारतीय सेना तैनात कर दी गई। तब तक, हज़ारों मुसलमान अपने घर छोड़ कर पलायन कर गए थे और अब भी अनेक कामचलाऊ राहत शिविरों में रह रहे हैं।

पुलिस को की गई एक शिकायत में, एक महिला ने बताया कि कैसे उसने जाट पुरुषों द्वारा उसके घर पर किए गए हमले से बचने का प्रयास किया, किंतु उनमें से पाँच लोगों ने उसे पकड़ा और एक हथियार दिखा कर धमकाया। वे उसे एक घर के भीतर ले गए और फिर उसके साथ बलात्कार किया। उस महिला ने इस घटना के लगभग तीन सप्ताह बाद रिपोर्ट लिखाई और बताया कि वह डर के कारण पहले सामने नहीं आई। सभी महिलाएँ जो सामने आई हैं, उन्होंने सामूहिक बलात्कार करने वालों की पहचान कर ली है।

बजाय इसके कि बलात्कार पीड़ितों का भरोसा वापस लाने का माहौल बनाए जाने के कदम उठाए, आपराधिक शिकायतें दर्ज करने वाले पुलिस प्राधिकारियों की प्रारंभिक प्रतिक्रियाओं में इसके विपरीत आभास मिलता है। जब ह्यूमन राइट्स वॉच ने मुज़फ्फरनगर के उन दो पुलिस थानों के प्राधिकारियों से बात की जहाँ यौन दुर्व्यवहार की शिकायतें दर्ज कराई गई हैं तो दोनों ने ही शिकायतों में देरी का हवाला देते हुए उनकी वैधता पर सवाल उठाए।

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि पीड़ितों के लिए उचित पुनर्वास एवं एक ऐसे सुरक्षित माहौल का निर्माण करने में विफल रहना, जहाँ वे न्याय एवं हर्जाने की मांग कर सकें, उत्तर प्रदेश राज्‍य के प्राधिकारियों की गंभीर प्रशासनिक खामियों को उजागर करता है।

मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “दंगे होने के एक महीने बाद भी, उत्तर प्रदेश सरकार ने उचित राहत, पुनर्वास एवं मुआवज़ा देने की कोई ठोस योजना नहीं बनाई है। प्राधिकारियों को नुकसान का मूल्यांकन करना चाहिए, ऐसा सुरक्षित वातावरण तैयार करना चाहिए जहाँ पीड़ित उनके साथ हुए दुर्व्‍यहार की रिपोर्ट दर्ज करा सकें तथा पीड़ितों को सेवाएँ उपलब्ध करानी चाहिएं।”

उत्तर प्रदेश राज्‍य के प्राधिकारियों को विस्थापितों के लिए पर्याप्त सुविधाओं से युक्‍त शिविर स्थापित करने चाहिएं। शिविर में मिलने वाली सेवाएँ आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के लिए संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शी सिद्धातों (United Nations Guiding Principles of Internally Displaced Persons)(IDPs) के अनुरूप होनी चाहिएं। संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुसार ये सेवाएँ विस्थापित समुदायों की संपूर्ण एवं स्वतंत्र भागीदारी और बगैर किसी भेदभाव के विकसित की जानी चाहिएं। ये सेवाएँ जिन बातों की गारंटी दें उनमें कम-से-कम कायदे का रहनसहन, आवश्यक खाद्यपदार्थ, पेय जल, बुनियादी आश्रय एवं आवास, उचित वस्त्र तथा आवश्यक चिकित्सा सेवाओं एवं सफाई व्यवस्था का प्रावधान होना लाज़मी है।

 

योजना की रूपरेखा; साम्प्रदायिक हिंसा से निपटने के लिए प्रभावी कानून बनाएँ

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि इसके साथ ही, राज्य प्राधिकारियों को समुदायों की वापसी अथवा पुनर्वास एवं उनकी सम्पत्ति दोबारा हासिल करने में सहायता के लिए एक दीर्घकालीन योजना बनानी चाहिए। जहाँ सम्पत्ति दोबारा हासिल करना असंभव हो वहाँ राज्य प्राधिकारियों को प्रभावित समुदायों को उचित मुआवज़ा दिलाने अथवा अन्य प्रकार की भरपाई कराने में सहायता करनी चाहिए।

दंगा प्रभावित समुदायों तथा उनके साथ काम कर रहे अधिकार समूहों के साथ विचार-विमर्श करके मुआवज़ा देने की योजना तैयार करनी चाहिए। यह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के गंभीर उल्लंघन का शिकार हुए पीड़ितों के निदान और मुआवज़े संबंधी संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी सिद्धातों एवं दिशानिर्देशों(UN Basic Principles and Guidelines on the Right to Remedy and Reparation for Victims of Gross Violations of International Human Rights Law)के अनुरूप होनी चाहिए। इन सिद्धांतों के अनुसार आर्थिक रूप से मूल्यांकन के योग्य किसी भी नुकसान का मुआवज़ा दिया जाना चाहिए जिसमें रोजगार, शिक्षा तथा सामाजिक लाभों जैसे अवसरों से वंचित रहना भी नुकसान माना जाएगा। इसके अतिरिक्त भौतिक सम्पत्ति का नुकसान एवं आजीविका का नुकसान जिसमें संभावित आय की क्षमता से वंचित रहना भी शामिल है, इसके लिए भी मुआवज़े का प्रावधान होना चाहिए।

राहत एवं मुआवज़ा देने की योजना में महिलाओं, विशेष तौर पर इन शिविरों में रह रही यौन हिंसा का शिकार हुई महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाना चाहिए। मानसिक आघात, कलंक का भय, बदले का डर तथा साम्प्रदायिक हिंसा का उनके जीवन पर दीर्घकालीन प्रभाव, इन सभी चिंताओं के निवारण के लिए, जरूरी है कि बलात्कार पीड़ितों सहित सभी महिलाओं से विचार-विमर्श करके उनके लिए राहत एवं मुआवज़ा प्रदान करने की योजनाएँ तैयार की जाएँ। प्रजनन संबंधी देखभाल एवं यौन स्वास्थ्य सेवाएँ तथा मनोवैज्ञानिक सहायता, उन सभी महिलाओं को मुहैया कराई जाए जिन्हें इनकी आवश्यकता है, चाहे वे बलात्कार का शिकार हुई हों या नहीं। यौन हिंसा पीड़ितों की चिकित्सा-कानूनी देखभाल के विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों (World Health Organization guidelines for medico-legal care for victims of sexual violence) का पालन किया जाना चाहिए जिनमें कहा गया है कि यौन हिंसा का शिकार हुए व्यक्ति का स्वास्थ्य एवं कल्याण “सबसे बड़ी प्राथमिकता”है और फॉरेन्सिक सेवाओं का प्रावधान स्वास्थ्य की जरूरतों से ऊपर नहीं है।

मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “उत्तर प्रदेश सरकार ने अपराधों की तहकीकात के लिए एक विशेष जाँच दल का गठन किया है। किंतु, इस घोषणा के एक महीने बाद भी इस टीम के बारे में, महिलाओं के प्रति संवेदनशील ढंग से यौन हिंसा से निपटने के उनके नज़रिये के बारे में अथवा पीड़ित एवं गवाहों को सुरक्षा सुनिश्चित कराने के लिए उनके पास मौजूद संसाधनों के बारे में बहुत कम जानकारी है।”

राज्य प्राधिकारियों को विशेष जाँच दल तथा एक संपूर्ण एवं निष्पक्ष आपराधिक जाँचकराने के लिए उन्हें मुहैया कराए गए संसाधनों के बारे में जानकारी का तुरंत सार्वजनिक एवं व्यापक रूप से प्रचार करना चाहिए, जिसमें उनकी पीड़ितों तथा गवाहों की सुरक्षा के उपायों की क्षमता का भी उल्लेख हो।

भारत को उन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से परामर्श कर जिन्हें साम्प्रदायिक हिंसा के शिकार लोगों की सहायता का अनुभव है, देश में साम्प्रदायिक हिंसा पर रोक लगाने तथा उसका निदान करने वाला एक कड़ा कानून भी बनाना चाहिए। ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि यह कानून पहले प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए। इनमें साम्प्रदायिक दंगों को रोकने और उनसे निपटने में विफल रहने पर राष्ट्र की जवाबदेही शामिल है जिसमें आदेश या उच्चाधिकारियों की ज़िम्मेदारी, भेदभाव न करने, संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शीसिद्धांतों के अनुरूप राहत, वापसी एवं पुनर्वास तथा निदान और मुआवज़े संबंधी संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी सिद्धातों एवं दिशानिर्देशों के अनुरूप निदान एवं मुआवज़े का अधिकार भी शामिल है।

मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “एक के बाद एक दंगे के बावजूद, भारतीय प्राधिकारी इस प्रकार की हिंसा को रोकने, पीड़ितों की सहायता करने अथवा न्याय सुनिश्चित कराने के लिए कुछ नहीं सीख पाए हैं। साम्प्रदायिक हिंसा से निपटने के लिए एक प्रभावी कानून की लंबे समय से ज़रूरत है और अब समय है कि उसे अमल में लाने के लिए कदम उठाए जाएँ।”

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