(न्यूयॉर्क)- ह्यूमनराइट्स, वॉच का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा 11 जून, 2014 को पारित एक अत्यंत महत्वपूर्ण संधि जबरन मजदूरी रोकने के संघर्ष में और तेजी लाने का काम करेगी और इससे दुनिया भर में इसके शिकार अनुमानित दो करोड़ दस लाख लोगों की सुरक्षा हो सकेगी और उन्हें मुआवजा मिल सकेगा। सरकारों, ट्रेड यूनियनों तथा नियोक्ताओं के संगठनों ने जो अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का हिस्सा हैं, जबरन मजदूरी समझौता, 1930 के लिए 2014 का प्रोटोकाल को पारित करने के लिए भारी संख्या में मतदान किया जिसके अंतर्गत बड़े पैमाने पर पारित किंतु अब पुरानी पड़ चुकी 1930 की संधि में फेरबदल हो सकेगा जिससे प्रवासी लोगों एवं निजी क्षेत्र में काम करने वालों सहित अन्य समकालीन समस्याओं से निपटा जा सकेगा।
जबरन मजदूरी के पीड़ितों में वे लोग शामिल हैं जिन्हें अवैध तरीके से लाया गया है अथवा जो पहले से ही कृषि, घरेलू कामों, उत्पादन अथवा यौन उद्योग में गुलामी का जीवन बिता रहे हैं। इनमें से कई पीड़ित खतरनाक परिस्थितियों में बहुत कम या बिना वेतन लंबे समय तक काम करते हैं और मनोवैज्ञानिक, शारीरिक अथवा यौन हिंसा झेलते हैं तथा जबरन रोके जाने, ऋण के बंधन, बदले की धमकी अथवा अन्य परिस्थितियों के चलते छोड़ कर जाने की आजादी से भी वंचित हैं।
ह्यूमनराइट्स वॉच में वरिष्ठ महिला अधिकार शोधकर्ता निशा वारिया का कहना है, "यह तथ्य कि लाखों लोग शोषणकारी एवं अमानवीय परिस्थितियों से अब भी जूझ रहे हैं, आधुनिक समाज पर एक गहरा धब्बा है"। उनका कहना है, "सरकारों को इस संधि को तत्काल स्वीकार करने तथा इसका कार्यान्वयन करने की आवश्यकता है ताकि उत्पीड़न रोका जा सके, उन पीड़ितों की भी पहचान हो सके और उन्हें सुरक्षा दी जाए जो सामने नहीं आए हैं तथा उत्पीड़न करने वालों को दंडित किया जा सके"।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि पीड़ितों में 55 प्रतिशत महिलाएँ हैं और 45 प्रतिशत पुरुष हैं। सभी पीड़ितों में बच्चों का अनुपात 26 प्रतिशत है। यह उत्पीड़न सामन्यतः सार्वजनिक नहीं हो पाते। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि जो लोग जबरन मजदूरी कराने में सक्रिय हैं वे अवैध मुनाफे में 150 अरब अमरीकी डॉलर तक कमा रहे हैं। विभिन्न देश कर संबधी आय तथा सामाजिक सुरक्षा योगदान में अरबों डॉलर गंवा रहे हैं।
नए जबरन मजदूरी समझौते में इससे बचने के जो उपाय शामिल हैं उनमें कार्रवाई की राष्ट्रीय योजना का निर्माण, जबरन मजदूरी का खतरा झेल रहे क्षेत्रों के लिए श्रम कानूनों के विस्तार, मजदूरों की जाँच में सुधार तथा प्रवासी मजदूरों की रोजगार देने के दमनकारी तरीकों से सुरक्षा जैसे विषय सम्मिलित हैं। नए समझौते में सरकारों के लिए लाजमी है कि वे व्यापारिक प्रतिष्ठानों में जबरन मजदूरी को रोकने तथा उससे निपटने के लिए उनके प्रयासों में उन्हें उचित सहयोग दें। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि जबरन मजदूरी का 90 प्रतिशत निजी अर्थव्यवस्था में होता है।
संधि में सरकारों के लिए यह भी आवश्यक है कि वे जबरन मजदूरी के पीड़ितों की पहचान करें, उन्हें रिहा कराएँ तथा उन्हें सहायता दें। साथ ही उन्हें बदले की कार्रवाई से भी सुरक्षित रखें।
संधि के अनुच्छेद 4 के अंतर्गत सरकारें इस बात के लिए भी बाध्य हैं कि वे यह सुनिश्चित करें कि सभी पीड़ितों की, किसी देश में उनके कानूनी दर्जे अथवा उपस्थिति की परवाह किए बिना, न्याय एवं समाधान तक पहुँच हो जिसमें उस देश में मुआवजे का भी प्रावधान शामिल है जहाँ उत्पीड़न हुआ हो। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि जबरन मजदूरी का शिकार लोगों में आधे से अधिक प्रवासी हैं। इस समय, जो प्रवासी जिनका अनियमित दर्जा है अथवा जो अपने देश लौट चुके हैं प्रतिबंधात्मक अप्रवास नीतियों के कारण, अधिकारियों से शिकायत करने, अदालतों में मुकदमा जारी रखने, अथवा उस भत्ते को पाने तक में विफल रहते हैं जिसका अभी भुगतान न हो पाया हो।
अनुच्छेद 4 में सरकारों के लिए यह भी आवश्यक है कि वे यह सुनिश्चित करें कि उन्हें जबरन मजदूरों को अवैध गतिविधियों के लिए उन को अभियोग से बचाने का भी अधिकार हो- उदाहरणतः प्रवास संबंधी अपराध, यौन कार्यों में संलग्नता, मादक पदार्थों से सम्बद्ध अपराध अथवा हिंसात्मक अपराध- जो उन्हें जबरन मजदूरी में होने के फलस्वरूप करने के लिए बाध्य होना पड़ा हो।
निशा वारिया का कहना है, "यह दुखद है कि जबरन मजदूरी के पीड़ितों के साथ प्रायः अपराधी जैसा व्यवहार किया जाता है न कि ऐसे लोगों के तौर पर जिन्हें सहायता की जरूरत है"। ‘‘अप्रवासन और आपराधिक कार्रवाईयों में जबरन मजदूरी के पीडि़तों की पहचान करने के प्रयासों में सुधार करना जिससे उन्हें उचित सहायता प्राप्त हो सके और दोहरे रूप से पीडि़त होने से बचाया जा सके, यह इस दशा में बड़ी उन्नति होगी।’’
जबरन मजदूरी पर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के समझौता 29 को 1930 में पारित किया गया और 177 देशों ने इसे स्वीकार किया। इसमें निहित जबरन मजदूरी की व्याख्या तथा उसे एक दंडयोग्य अपराध बनाने की जरूरत राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मानदंडों में शामिल है। फिर भी, विदेशी उपनिवेशों में जबरन मजदूरी से निपटने के अन्य प्रावधान पुराने हो चुके हैं। नया समझौता उन उपबंधोंको मूल संधि से हटा कर समझौता 29 को आधुनिक रूप देता है।
सरकारों को नई संधि को अंगीकृत करना होगा ताकि वे उसके उपबंधों को पूरा करने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य हों। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के सदस्यों ने एक ऐसी सिफ़ारिश पर भी बात की जो सरकारों को अबाध्यकारी कानूनी मार्गदर्शन प्रदान कराएगी। मुख्य सिफारिशों में विश्वसनीय आंकड़े एकत्र करने, बाल मजदूरी से निपटने, बुनियादी सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराए जाने, कामगारों से रोजगार दिलाने का शुल्क लेने पर रोक लगाने, तथा राजनयिकों द्वारा जबरन मजदूरी के मामलों से निपटने में अंतरराष्ट्रीयस्तर पर सहयोग शामिल हैं।
अतिरिक्त सिफारिशों में विचार करने तथा बहाली की अवधि शामिल है ताकि प्रवासी पीड़ित सुरक्षा उपायों अथवा कानूनी कार्रवाई के बारे में निर्णय लेने से पूर्व सम्बद्ध देशों में अस्थाई तौर पर रह सकें। सिफारिश में स्पष्ट किया गया है कि कानून से जुड़ी संस्थाएँ भी जबरन मजदूरी के लिए जिम्मेदार ठहराई जा सकती हैं और उन्हें भी जबरन मजदूरी से हुए लाभ अथवा अन्य संपत्ति को जब्त करने जैसे दंड दिए जाने चाहिएँ।
ह्यूमनराइट्स वॉच के प्रतिनिधियों ने वार्ताओं में भी हिस्सा लिया और बताया कि प्रमुख सुरक्षा उपायों को मजबूत बनाने के कई अवसर गंवा दिए गए हैं। उदाहरणों में यह बात भी शामिल थी कि सरकारों के लिए यह प्रावधान होना चाहिए कि वे बजाय व्यापारिक प्रतिष्ठानों से यह "अपेक्षा" रखें कि वे अपनी आपूर्ति व्यवस्था सहित अन्य विभागों में जबरन मजदूरी के विरुद्ध उचित कार्रवाई करें, सरकारों को चाहिए कि वे उन्हें "समर्थन" दें। सिफारिशों के जो मसविदे तैयार किए गए उनमें यह भी कहा गया था कि सरकारें पीड़ितों के लिए मुआवाज़े का कोष तैयार करें और उनकी स्वीकृति के हिसाब से उनको सहायता दें। किंतु अंतिम प्रारूप में इसे शामिल करने के लिए पर्याप्त समर्थन नहीं जुट पाया। मूल मसविदे तथा सिफ़ारिशों में बार-बार पीड़ितों को मुआवाज़े का उल्लेख है, किंतु संभावित समाधान के रूप में, इसे अनिवार्य नहीं बनाया गया है।
वारिया का कहना है, "इन वार्ताओं का संपूर्ण निष्कर्ष एक मजबूत संधि है जिसका सरकारों को समर्थन करना चाहिए"। उन्होंने कहा, "जबरन मजदूरी में कुछ सर्वाधिक उत्पीड़न के मामले शामिल हैं जो आज हमारे सामने हैं तथा सरकारों को उन्हें दूर करने तथा पीड़ितों को सहयोग देने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिएं"।
सरकारों, कामगारों तथा नियोक्ताओं द्वारा डाले गए 472 मतों में से, 437 प्रतिनिधियों ने संधि के पक्ष में मतदान किया, 8 ने विरोध में मतदान किया तथा 27 अनुपस्थित रहे।
पिछले दशक में ह्यूमन राइट्स वॉच ने जबरन मजदूरी जबरन मजदूरी पर 49 रिपोर्टें प्रकाशित की हैं। उनमें बच्चों के भीख मांगने, घरेलू काम, निर्माण, कृषि तथा खनन जैसे कार्यों में शोषण; कारावासों तथा नशीले पदार्थ मामलों में बंदीगृहों तथा अनिश्चितकालीन भर्ती में जबरन मजदूरी आदि उत्पीड़नों के मामले शामिल हैं।