Skip to main content

भारत

2021 की घटनाएं

नई दिल्ली के बाहरी इलाके, हरियाणा के बहादुरगढ़ में विवादस्पद कृषि सुधारों के खिलाफ अपने विरोध प्रदर्शन की पहली वर्षगांठ मनातीं किसान महिलाएं, भारत, 26 नवंबर, 2021.

©2021 AP Photo/Mayank Makhija/NurPhoto

भारत में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली सरकार के आलोचकों समेत कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों और यहां तक कि कवियों, अभिनेताओं एवं व्यवसायियों पर राजनीतिक रूप से प्रेरित उत्पीड़न, कानूनी कार्रवाई और टैक्स चोरी संबंधी छापों के खतरे बढे हैं.  सरकारी तंत्र ने विदेशी अंशदान नियमनों का इस्तेमाल कर या वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगाकर अधिकार समूहों का काम-काज बंद करा दिया है.

सरकार ने धार्मिक अल्पसंख्यकों, खास तौर से मुसलमानों के साथ भेदभाव बरतने वाले कानूनों और नीतियों को अख्तियार किया. इन कानूनों और नीतियों,  और साथ ही कुछ भाजपा नेताओं द्वारा मुसलमानों को बदनाम करने और हिंसा करने वाले भाजपा समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई करने में पुलिस की नाकामयाबी ने हिंदू राष्ट्रवादी समूहों को मुसलमानों और सरकार की आलोचना करने वालों पर बेखौफ़ होकर हमले करने के लिए प्रोत्साहित किया.

अप्रैल में कोविड -19 की विनाशकारी दूसरी लहर ने भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढांचे की प्रणालीगत कमजोरियों और महामारी से निपटने में सरकारी कुव्यवस्था को उजागर किया. सरकारी तंत्र ने महामारी से निपटने की अपनी कार्रवाइयों की आलोचना करने वालों को डराया-धमकाया और महामारी के खतरे को कम करके बताने के लिए आंकड़ों को कथित तौर पर छिपाया.

जम्मू और कश्मीर

फरवरी में, सरकार ने कश्मीर में इंटरनेट पर 18 माह से जारी प्रतिबंध आखिरकार हटा लिए. ये प्रतिबंध अगस्त 2019 में राज्य की संवैधानिक स्वायत्तता रद्द कर इसे दो केंद्र शासित क्षेत्रों में बांटने के बाद लगाए गए थे.

सितंबर में, अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी की मृत्यु के बाद, सरकार ने उनके अंतिम संस्कार के दौरान लोगों के इकट्ठा होने से रोकने के लिए एक बार फिर दो दिनों के लिए आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया और लगभग तमाम तरह की संचार सेवाएं बंद कर दी.  गिलानी के परिवार ने आरोप लगाया कि उन्हें समुचित तरीके से अंतिम संस्कार करने के अधिकार से वंचित किया गया.

जुलाई में, संयुक्त राष्ट्र के चार मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भारत सरकार को पत्र लिखकर अलगाववादी नेता मुहम्मद अशरफ खान सेहराई की हिरासत में हुई मौत की जांच की मांग की. मुहम्मद अशरफ को जुलाई 2020 में एक निवारक निरोध कानून - जन सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में लिया गया था. मार्च में, संयुक्त राष्ट्र के पांच विशेषज्ञों ने भारत सरकार को पत्र लिखकर कश्मीरी राजनेता वहीद पारा की नजरबंदी; दुकानदार इरफान अहमद डार की हिरासत में कथित हत्या; और नसीर अहमद वानी के जबरन गायब होने के बारे में जानकारी मांगी. उन्होंने "दमनकारी कार्रवाइयों और स्थानीय आबादी के मौलिक अधिकारों के सुनियोजित उल्लंघन के व्यापक तौर-तरीकों के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा बलों द्वारा दी गई धमकी, तलाशी एवं जब्ती पर चिंता जताई."

कश्मीर में पत्रकारों को आतंकवाद के आरोपों में छापेमारी और गिरफ्तारी सहित सरकार के बढ़ते उत्पीड़न का सामना करना पड़ा. सितंबर में, पुलिस ने चार कश्मीरी पत्रकारों के घरों पर छापा मारा और उनके फोन एवं लैपटॉप जब्त कर लिए. जून में, संयुक्त राष्ट्र के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर विशेष दूत और मनमाने हिरासत के मामलों के कार्य समूह ने “जम्मू और कश्मीर की स्थिति का कवरेज करने वाले पत्रकारों को कथित तौर पर मनमाने तरीके से हिरासत में लेने और धमकी देने” पर चिंता व्यक्त की.

सुरक्षा बलों को बेख़ौफ़ कार्रवाई करने की छूट

यातना और गैर-न्यायिक हत्याओं के आरोपों का सिलसिला जारी रहा. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2021 के पहले नौ महीनों में पुलिस हिरासत में 143 मौतें और 104 कथित गैर-न्यायिक हत्याएं दर्ज कीं.

मई में भाजपा नेता हिमंत बिस्वा सरमा के असम के मुख्यमंत्री बनने के बाद, अपराध पर उनकी सरकार की "जीरो टॉलरेंस नीति" के कारण पुलिस हत्याएं बढ़ीं. सितंबर तक, खबरों के मुताबिक पुलिस ने कथित तौर पर 27 लोगों की गैर-न्यायिक हत्या की और 40 अन्य को घायल किया. सितंबर में, असम पुलिस ने जबरन बेदखल किए जाने के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन पर गोलियां चलाईं, जिसमें एक व्यक्ति और एक 12 वर्षीय लड़के की मौत हो गई. सोशल मीडिया पर साझा किए गए एक वीडियो में, पुलिस एक व्यक्ति को गोली मारकर उसकी पिटाई करते दिखी और स्थानीय अधिकारियों द्वारा किराए पर लिया गया एक फोटोग्राफर घायल व्यक्ति के शरीर पर कूदता हुआ देखा गया. पीड़ित व्यक्ति बंगाली भाषी मुसलमान था. इस  समुदाय को भाजपा सरकार अक्सर "अवैध बांग्लादेशी" के रूप में बदनाम करती है.

सरकारी तंत्र ने गंभीर उत्पीड़न के मामलों में भी जवाबदेही बाधित करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 का इस्तेमाल जारी रखा. इस धारा के तहत पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार की मंजूरी जरूरी होती है. मार्च में, गुजरात सरकार ने, 2004 में मुस्लिम महिला, इशरत जहां की गैर-न्यायिक हत्या के मामले के आरोपी तीन पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा चलाने की इजाज़त देने से इनकार कर दिया.

सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, जो जम्मू और कश्मीर और कई पूर्वोत्तर राज्यों में लागू है, मानवाधिकारों के गंभीर हनन के मामलों में भी सुरक्षा बलों को अभियोजन से प्रभावी सुरक्षा प्रदान करता है.

सीमा सुरक्षा बल ने अक्सर बांग्लादेश के अनियमित अप्रवासियों और पशु व्यापारियों के खिलाफ अत्यधिक बल का इस्तेमाल किया.

दलित, आदिवासी समूह और धार्मिक अल्पसंख्यक

हिंदू भीड़ ने बेख़ौफ़ होकर मुसलमानों, अक्सर कामगार वर्ग के लोगों के साथ मारपीट की, जबकि भाजपा समर्थकों ने सरकार के आलोचकों, खासकर धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ आधारहीन शिकायतें दर्ज कीं.

जनवरी में, मुस्लिम स्टैंड-अप कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी और उनके पांच सहयोगियों को एक भाजपा नेता के बेटे की शिकायत पर गिरफ्तार किया गया. इस शिकायत में उन पर ऐसे चुटकुलों द्वारा हिंदू भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाया जिन्हें फारूकी ने कभी सुनाए ही नहीं थे. बाद में पुलिस ने स्वीकार किया कि उसके पास इस कार्यक्रम से जुड़ा कोई सबूत नहीं है.

अक्टूबर में, भाजपा युवा शाखा और संबद्ध हिंदू राष्ट्रवादी समूहों, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और बजरंग दल से कथित तौर पर जुड़े 200 से अधिक पुरुष और महिलाओं ने उत्तराखंड में एक चर्च पर हमला किया, संपत्ति को नुकसान पहुंचाया और चर्च जाने वाले कई लोगों को घायल कर दिया. यह हमला मध्य प्रदेश के झाबुआ जिला में विहिप द्वारा कथित तौर पर चर्चों को ध्वस्त करने की धमकी देने के तुरंत बाद हुआ. विहिप ने यह दावा किया कि चर्च वहां अवैध धर्मांतरण कर रहे हैं. हिंदू राष्ट्रवादी समूहों ने छत्तीसगढ़ में भी चर्चों पर हमले किए. कई राज्यों ने जबरन धर्म परिवर्तन की रोकथाम के लिए कानून बनाए या कानूनों में संशोधन किए. मगर प्रकट रूप से जबरन धर्मांतरण की रोकथाम के लिए बनाए गए इन कानूनों का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर अल्पसंख्यक समुदायों, खास तौर से ईसाई एवं मुस्लिम, दलित और आदिवासियों को निशाना बनाने के लिए किया गया है.

सितंबर में, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 2020 में दलितों के खिलाफ अपराधों के 50,291 मामले दर्ज किए गए, जो पिछले वर्ष के मुकाबले 9.4 फीसदी अधिक हैं. आदिवासी समुदायों के खिलाफ अपराध में भी वृद्धि हुई. 9.3 फीसदी बढ़ोतरी के साथ, 2020 में ऐसे 8,272 मामले दर्ज किए गए.

नागरिक समाज और संगठन बनाने की स्वतंत्रता

जुलाई में, जेल में बंद आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता 84 वर्षीय स्टेन स्वामी की मौत अधिकार कार्यकर्ताओं के जारी उत्पीड़न का प्रतीक है. स्वामी को 2017 में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में  जातीय हिंसा के मामले में राजनीति से प्रेरित आतंकवाद के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था. इस मामले में पंद्रह अन्य प्रमुख मानवाधिकार रक्षकों पर भी मामले दर्ज किए गए. मानवाधिकार रक्षकों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत ने कहा कि स्वामी की मौत "भारत के मानवाधिकार संबंधी रिकॉर्ड पर हमेशा एक धब्बा बनी रहेगी."

फ़रवरी में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विभिन्न शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शनों में शिरकत करने वालों को 'परजीवी' बताया.

नवंबर 2020 से कृषि कानूनों में संशोधन का विरोध कर रहे लाखों किसानों, उनमें शामिल बहुत से अल्पसंख्यक सिख समुदाय के किसानों पर भाजपा नेताओं और सरकार परस्त मीडिया ने आरोप लगाया कि उनका एजेंडा अलगाववादी है.

26 जनवरी, 2021 को पुलिस और प्रदर्शनकारी किसानों के बीच हिंसक झड़पों में एक प्रदर्शनकारी की मौत के बाद सरकारी तंत्र ने कई दमनात्मक कदम उठाए. उसने पत्रकारों के खिलाफ आधारहीन आपराधिक मामले दर्ज किए, अनेक स्थानों पर इंटरनेट बंद कर दिया, पत्रकारों को प्रदर्शन स्थलों तक जाने से रोका और ट्विटर को सैकड़ों एकाउंट्स बंद करने का आदेश दिया. फरवरी में, सरकारी तंत्र ने विरोध प्रदर्शन संबंधी जानकारी प्रदान करने वाले एक दस्तावेज़ को कथित रूप से संपादित करने के लिए राजद्रोह और आपराधिक साजिश का आरोप लगाते हुए जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि को गिरफ्तार किया और दो अन्य के खिलाफ वारंट जारी किया. मार्च में, कई संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने विरोध-प्रदर्शनों को प्रतिबंधित करने, इसमें शामिल लोगों को डराने-धमकाने और इन मुद्दों पर सार्वजनिक बहस-मुबाहिसा को दबाने के लिए सरकार के तौर-तरीकों पर चिंता जताई.

अक्टूबर में, पुलिस ने भाजपा के एक मंत्री के बेटे को उत्तर प्रदेश में अपनी कार से प्रदर्शनकारी किसानों को रौंद कर मार डालने के आरोप में गिरफ्तार किया. गुस्साई भीड़ ने जवाबी कार्रवाई में चालक समेत कार में सवार तीन लोगों की हत्या कर दी. इस हिंसा में एक पत्रकार की भी मौत हुई.

सितंबर में, सरकार के वित्त विभाग के अधिकारियों ने वित्तीय और प्रशासनिक अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए दिल्ली में कार्यकर्ता हर्ष मंदर के घर और कार्यालय पर छापा मारा. जुलाई में, सरकार ने विदेशी अंशदान विनियमन कानून का इस्तेमाल करते हुए जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण या बाल श्रम पर काम कर रहे 10 अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों को मिलने वाले अंशदान पर रोक लगा दी.

जून में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने फरवरी 2020 में दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा के मामले में आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार तीन छात्र नेताओं को जमानत दे दी. न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, “असहमति दबाने की अपनी व्यग्रता में, विरोध करने के संवैधानिक रूप से गारंटीशुदा अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा राज्य की नजर में कुछ-कुछ धुंधली होती जा रही है.”

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने मानवाधिकार रक्षकों के खिलाफ आपराधिक आरोप दर्ज करने के लिए आतंकवाद निरोधी कानूनों के दुरुपयोग पर बार-बार चिंता जताई है. अप्रैल में, संयुक्त राष्ट्र के अधिकार विशेषज्ञों ने आतंकवाद के आरोपों में आदिवासी मानवाधिकार रक्षक हिडमे मरकाम की कथित मनमानी हिरासत पर भारत सरकार को पत्र लिखा. उन्होंने कहा कि यह गिरफ्तारी उनके मानवाधिकार कार्यों, विशेष रूप से राज्य सुरक्षा बलों द्वारा महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों को उजागर करने के उनके प्रयासों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई प्रतीत होती है.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता का अधिकार

सरकार ने राजनीतिक रूप से प्रेरित मुकदमों और कर छापों के जरिए सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों और समाचार संस्थानों को डराना-धमकाना और परेशान करना जारी रखा. जुलाई में, भारतीय समाचार वेबसाइट द वायर ने बताया कि एडवांस्ड इजरायली स्पाइवेयर पेगासस के जरिए निशाना बनाए गए संभावित लोगों की सूची में मानवाधिकार रक्षकों, पत्रकारों, वकीलों, सरकारी अधिकारियों और विपक्षी राजनेताओं सहित कम-से-कम 300 भारतीय फोन नंबर शामिल हैं. भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार कई कार्यकर्ताओं के साथ-साथ उनके परिवार के कुछ सदस्यों के फोन नंबर भी लीक हुई पेगासस सूची में शामिल थे. अक्टूबर में, सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस स्पाइवेयर के इस्तेमाल से संबंधित कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद अवैध निगरानी के आरोपों की जांच के लिए एक स्वतंत्र पैनल नियुक्त किया.

फरवरी में सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियमावली, 2021 अधिसूचित की. यह सोशल मीडिया सेवाओं, डिजिटल समाचार सेवाओं और क्यूरेटेड वीडियो स्ट्रीमिंग साइट्स सहित इंटरनेट इन्टर्मीडीएरीज को निशाना बनाती है. हालांकि सरकार का कहना है कि नियमों का उद्देश्य “फेक न्यूज़” के प्रसार पर रोक लगाना है, लेकिन ये नियम ऑनलाइन सामग्री पर पहले से अधिक सरकारी नियंत्रण की अनुमति देते हैं, एन्क्रिप्शन को कमजोर करने का खतरा प्रस्तुत करते हैं और जाहिर तौर पर, ऑनलाइन निजता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों को गंभीर रूप से कमजोर करेंगे. जून में, संयुक्त राष्ट्र के तीन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि ये नियम अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानदंडों के अनुरूप नहीं हैं.

महिला और बालिका अधिकार

अगस्त में दिल्ली में एक 9 वर्षीय दलित लड़की के कथित बलात्कार और हत्या ने एक बार फिर यह उजागर किया कि दलित महिलाओं और लड़कियों के समक्ष यौन हिंसा का खतरा ज्यादा है. अगस्त में, उत्तर प्रदेश की एक 24 वर्षीय महिला और उसके पुरुष मित्र ने सुप्रीम कोर्ट के सामने आत्मदाह कर लिया. उनका आरोप था कि एक सांसद के खिलाफ बलात्कार की शिकायत के प्रतिशोध में राज्य पुलिस और न्यायपालिका उन्हें परेशान कर रही थी.

फरवरी में, भाजपा के पूर्व मंत्री एमजे अकबर पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा हार गए. प्रिया रमानी ऐसी कई अन्य महिलाओं में शामिल थीं जिन्होंने अकबर के खिलाफ़ कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. दिल्ली की एक अदालत ने इस फैसले में, जो कि भारत के #MeToo आंदोलन की पहली बड़ी कानूनी जीत है, कहा कि "यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाने की खातिर किसी महिला को दंडित नहीं किया जा सकता है." हालांकि, कार्यस्थल पर यौन हिंसा की रोकथाम वाले कानून, खासकर अनौपचारिक क्षेत्र की महिलाओं के लिए कानून पर अमल अभी भी काफी असंतोषजनक है.

कोविड-19 महामारी ने कार्यबल भागीदारी में महिलाओं की मौजूदा चुनौतियां बढ़ा दी, और भी बड़ी तादाद में महिलाओं को रोजगार से बेदखल कर दिया और उन्हें गरीबी में धकेल दिया. अध्ययनों से पता चला है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने अधिक संख्या में काम गवाएं; 2021 के एक अध्ययन में बताया गया है कि 2020 में पहले लॉकडाउन के दौरान 7 फीसदी  पुरुषों के मुकाबले 47 फीसदी महिलाओं ने अपनी नौकरी खो दी, और वे साल के अंत तक काम पर वापस नहीं लौटीं. अनौपचारिक क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति और भी बदतर रही. मार्च और अप्रैल 2021 के बीच, ग्रामीण भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत 80 फीसदी महिलाओं का रोजगार छीन गया.

कोविड-19 महामारी के दौरान बाल अधिकार

सितंबर 2021 में, भारत के कई राज्यों ने मार्च 2020 के बाद ज्यादातर समय बंद रहे स्कूलों को फिर से खोलना शुरू कर दिया. इन स्कूलों की बंदी से भारत में लगभग 32 करोड़ बच्चे प्रभावित हुए. संसद की एक स्थायी समिति की अगस्त की एक रिपोर्ट में कहा गया कि बच्चों की शिक्षा को "बहुत नुकसान पहुंचा और उनके समग्र विकास में काफी गिरावट आई क्योंकि शिक्षा क्षेत्र सहायता, पोषण और मनोवैज्ञानिक सेवाएं भी प्रदान करता है." रिपोर्ट के मुताबिक 77 प्रतिशत छात्र ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल नहीं हो पाए, जबकि 40 प्रतिशत छात्रों के पास  दूरस्थ शिक्षा तक पहुंच नहीं थी.

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा फरवरी में किए गए एक अध्ययन, जिसमें पांच राज्यों के कक्षा 2 से 6 के लगभग 16 हजार छात्र-छात्राओं को शामिल किया गया, से यह बात सामने आई कि बच्चों की शिक्षा को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है. कुछ अर्थशास्त्रियों के नेतृत्व में तैयार एक अन्य रिपोर्ट में यह पाया गया कि स्कूल बंद होने का बच्चों, विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों और गरीब एवं हाशिए के परिवारों के बच्चों की शिक्षा पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा.

स्कूली शिक्षा में व्यवधान के साथ-साथ, खास तौर पर हाशिए के समुदाय की आमदनी में गिरावट और रोजगार ख़त्म होने के कारण बाल श्रम, कम उम्र में शादी और मानव-तस्करी में बढ़ोतरी हुई. यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में बताया गया कि लगभग एक करोड़ छात्र-छात्राओं के  स्कूल कभी नहीं लौट पाने की आशंका है.

विकलांग व्यक्तियों के अधिकार

विकलांगता अधिकार समूहों ने न्याय तक पहुंच में विकलांग व्यक्तियों की बाधाओं की पहचान करने वाले दो अदालती फैसलों का स्वागत किया. साथ ही, समूहों ने मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों में उत्पीड़न समाप्त करने की मांग की. सितंबर में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मानसिक अस्पतालों में विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है और सरकार से राज्य संचालित संस्थानों की अधिक सघन निगरानी को कहा. अदालत ने राज्यों को आदेश दिया कि वे मानसिक स्वास्थ्य केन्द्रों में इलाजरत सभी लोगों और वहां के कर्मचारियों को कोविड-19 टीकाकरण उपलब्ध कराएं. अप्रैल में, सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला में विकलांग व्यक्तियों के लिए  आपराधिक न्याय प्रणाली को और अधिक सुलभ बनाने हेतु ठोस सुधार करने संबंधी भारत के विकलांगता अधिकार आंदोलन की मांग को स्वर दिया.

यौन उन्मुखता और लैंगिक पहचान

जून में, मद्रास उच्च न्यायालय ने लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर और इंटरसेक्स व्यक्तियों की सुरक्षा और राज्य के सरकारी तंत्र द्वारा उन्हें हैरान-परेशान किए जाने की रोकथाम के लिए दिशानिर्देश जारी किए. फैसले में उनके साथ किए जाने वाले व्यापक भेदभाव को स्वीकार किया गया और पुलिस एवं न्यायपालिका के लिए प्रशिक्षण और संवेदीकरण कार्यक्रमों सहित समाज में इनके खिलाफ पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए कई उपायों की भी सिफारिश की गई.

जनवरी में, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इंटरसेक्स भिन्नताओं के साथ जन्मे बच्चों के चिकित्सकीय रूप से अनावश्यक “सामान्यीकरण” सर्जरी पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की. अगस्त में, एक अधिकार समूह ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर इस मामले में राज्य बाल अधिकार आयोग की सिफारिश का हवाला देते हुए दिल्ली सरकार से इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की.

प्रमुख  अंतर्राष्ट्रीय  किरदार

अप्रैल में, यूरोपीय संघ ने भारत के साथ एक स्थानीय मानवाधिकार संवाद आयोजित किया. आज तक, यूरोपीय संघ के विदेश नीति विभाग ने भारत में मानवाधिकारों की स्थिति पर सार्वजनिक रूप से चिंता व्यक्त करने से परहेज किया है, जैसा कि यूरोपीय संघ के नेताओं ने मई में अपने भारतीय समकक्षों के साथ एक शिखर सम्मेलन के दौरान किया है. यूरोपीय संसद यूरोपीय संघ का एकमात्र ऐसा निकाय है जिसने भारत में मानवाधिकारों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की है. अप्रैल में उसने अपनी सिफारिश में यह चिंता व्यक्त की थीं.

भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच सितंबर में आयोजित पहली 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता में साइबर और क्रिटिकल टेक्नोलॉजी संबंधी सहयोग पर चर्चा की गई और अफगानिस्तान में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधी प्रयासों का आह्वान किया गया.

सितंबर में, प्रधानमंत्री मोदी ने वाशिंगटन डीसी में जापान, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका के नेताओं के साथ क्वाड शिखर सम्मेलन में पहली बार सीधे तौर पर शिरकत की. नेताओं ने चीन पर नजर रखते हुए स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र और वैश्विक वैक्सीन आपूर्ति को बढ़ावा देने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई. अफगानिस्तान में तालिबान के नियंत्रण से उत्पन्न होने वाले प्रभाव पर चर्चा करने के लिए अमेरिका के उप-विदेश मंत्री ने अक्टूबर में दिल्ली का दौरा किया.

विदेश नीति

फरवरी में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद, हालांकि भारत ने हिंसा की निंदा की और हिरासत में लिए गए नेताओं की रिहाई की मांग की, लेकिन यह जून में संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव से गैरहाजिर रहा जिसमें मनमाने ढंग से हिरासत में लिए गए लोगों की रिहाई, देश में हथियारों की आपूर्ति रोकने और म्यांमार की सेना से 2020 के चुनाव के नतीजों का सम्मान करने की मांग की गई थी.

अगस्त में, भारत की महीने भर की अध्यक्षता के दौरान, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में  अफगानिस्तान पर पारित एक प्रस्ताव में तालिबान से यह मांग की गई कि वह देश छोड़ना चाह रहे अफगान नागरिकों के लिए सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करे, मानवीय सहायता पहुंचाने की अनुमति दे और मानवाधिकारों को बरक़रार रखे. तालिबान के साथ पाकिस्तान के संबंधों का ध्यान रखते हुए भारत ने तालिबान से यह प्रतिबद्धता लेने पर जोर दिया कि चरमपंथी समूह भारत पर हमले के लिए अफगानिस्तान की सरज़मीन का इस्तेमाल नहीं करें. अगस्त में, कतर में भारतीय राजदूत ने दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख से मुलाकात की.

भारत ने बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका सहित अन्य पड़ोसियों के साथ सार्वजनिक रूप से अधिकारों की सुरक्षा का मुद्दा नहीं उठाया.

भारत ने 47 देशों को 1.07 करोड़ टीके मुफ्त में दिए, 26 देशों को व्यावसायिक रूप से 3.57 करोड़ टीकों का निर्यात किया, और कोवैक्स को 1.98 करोड़ टीकों की आपूर्ति की. कोवैक्स एक  वैश्विक वैक्सीन पहल है जो निम्न और मध्यम आय वाले देशों के बीच टीकों की खरीद और वितरण करती है. कोवैक्स की आपूर्ति मुख्यतः एस्ट्राज़ेनेका करती है, जो भारत में उत्पादन के लिए अपने एकमात्र साझेदार, सीरम इंस्टिट्यूट पर निर्भर है.

भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान मौत और संक्रमण के मामलों में भारी उछाल आने   पर सरकार ने सभी टीकों का निर्यात रोक दिया, जिससे कोवैक्स पर निर्भर देशों में टीके की किल्लत हो गई. सितंबर में, सरकार ने कहा कि वह बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव समेत अन्य देशों को फिर से निर्यात को शुरू करेगी.