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भारत

2016 की घटनाएँ

Indian policemen patrol a street following a protest in Srinagar against killings in Kashmir, August 30, 2016.

© 2016 Danish Ismail /Reuters

Keynote

 
Republican presidential nominee Donald Trump speaks at a campaign rally in Minneapolis, Minnesota, U.S. November 6, 2016.
The Dangerous Rise of Populism

Global Attacks on Human Rights Values

Essays

 
illustration © 2017 Brian Stauffer for Human Rights Watch
The Internet is Not the Enemy

As Rights Move Online, Human Rights Standards Move with Them

 
Illustration © 2017 Brian Stauffer for Human Rights Watch
The Lost Years

Secondary Education for Children in Emergencies

 
Illustration  © 2017 Brian Stauffer for Human Rights Watch
Overreach

How New Global Counterterrorism Measures Jeopardize Rights

 
illustration © 2017 Brian Stauffer for Human Rights Watch
When Exposing Abusers Is Not Enough

Strategies to Confront the Shameless

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थक होने का दावा करने वाले निगरानी समूहों द्वारा अक्सर अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बंदिशें और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमलें आज भारत में सबसे बढ़ती चिंताएं हैं. 2016 में, अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए छात्रों पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया; नागरिक स्वतंत्रता की चुनौतियों पर चिंता प्रकट करनेवालों को भारत विरोधी करार दिया गया; गोमांस के लिए गायों को मारने, चोरी करने या बेचने के शक में दलितों और मुसलमानों पर हमले हुए; और भारत के प्रतिबंधात्मक विदेशी अनुदान नियमों के कारण गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) को दबाव में लाया गया.

2016 के जुलाई में, जम्मू और कश्मीर में शुरू हुए हिंसक विरोध पर कड़ी कार्रवाई में 90 से अधिक लोगों की मौत हुई है और सैकड़ों घायल हुए हैं, इससे सरकारी बलों के खिलाफ असंतोष और भड़का है. भारत के मध्य में स्थित राज्य छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों द्वारा यौन उत्पीड़न और अन्य दुर्व्यवहार की खबरों सहित अत्याचार और गैर-न्यायिक हत्याओं के नए आरोपों के बीच बड़े पैमाने पर पुलिस और सुरक्षा बलों को अभयदान (इम्पुनिटी) जारी है.

2016 में कुछ सकारात्मक घटनाएं भी हुईं. नरेंद्र मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से हाशिए पर रहने वाले भारतीयों की बैंकिंग, बीमा और पेंशन जैसी वित्तीय सेवाओं तक अधिक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए और ज्यादा-से-ज्यादा घरों में आधुनिक स्वच्छता उपलब्ध कराने के लिए अभियान चलाया. जुलाई में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षा बलों को मिले अभयदान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया. अपने एक फैसले में उसने कहा कि सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम (अफ्स्पा) आंतरिक सशस्त्र संघर्षों में तैनाती के दौरान किए गए अपराधों के अभियोजन से सैनिकों की रक्षा नहीं करता है. अदालत ने समलैंगिकता को अपराध बताने वाले भेदभावपूर्ण औपनिवेशिक कानून को चुनौती देने के लिए नया जीवन भी प्रदान किया.

सुरक्षा बलों के दुर्व्यवहार और जवाबदेही का अभाव

भारतीय कानून सरकारी अधिकारियों पर मुकदमा चलाना अगर असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर बनाते हैं. दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 अदालतों को ऐसे किसी भी अपराध (यौन अपराधों को छोड़कर) का संज्ञान लेने से रोकती है जिन्हें अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए सरकारी अधिकारियों द्वारा कथित रूप से अंजाम दिया गया हो, जब तक कि केंद्र या राज्य सरकारें  अभियोजन की अनुमति नहीं देतीं. अगस्त में, एक विशेष अदालत ने इस प्रावधान के तहत 2005 के एक गैर-न्यायिक हत्या मामले में गुजरात पुलिस के अधिकारी राजकुमार पांडियन को बरी कर दिया. पांडियन इस मामले में बरी कर दिए गए बारहवें अभियुक्त हैं.

2016 में इक्का-दुक्का मामलों में ही पुलिस को दुर्व्यवहार के लिए जवाबदेह ठहराया गया. जनवरी में, मुंबई में चार पुलिसकर्मियों को पुलिस हिरासत में 20 साल के शख्श की मौत में उनकी भूमिका के लिए सात साल की जेल की सजा सुनाई गई. अप्रैल में, 1991 में उत्तर प्रदेश राज्य के पीलीभीत जिले में 11 सिखों की हत्या के जुर्म में 47 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई.

सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम को निरस्त करने की मांग के बावजूद, आंतरिक संघर्ष के क्षेत्रों में तैनात सैनिकों को अभियोजन से अभयदान मिलना जारी है. हालांकि जुलाई 2016 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मणिपुर में कथित गैर-न्यायिक हत्याओं के 1,528 मामलों की जांच के आदेश के फैसले में कहा कि अफ्स्पा अत्यधिक बल या प्रतिशोध के लिए बल प्रयोग करने वाले सुरक्षा बलों को अभयदान प्रदान नहीं करता है और हर कथित गैर-न्यायिक हत्या की जांच होनी चाहिए. जनवरी में एक मणिपुरी पुलिसकर्मी ने यह कबूल किया कि उसने वर्ष 2002 से 2009 के बीच 100 से ज्यादा संदेहास्पद आतंकियों को मारने के आदेशों पर कार्रवाई की थी. इससे यह राज खुल गया कि पुलिस ने कैसे उन अवैध तरीकों को अपनाया जिन्हें लम्बे समय से सेना और अर्धसैनिक बल इस्तेमाल में लाते रहे हैं.

अक्टूबर में, अधिकारियों ने मध्यप्रदेश में उच्च सुरक्षा जेल से भाग निकलने वाले आठ कैदियों की हत्या की जांच की मांग का विरोध किया, इससे ये चिंताएं बढ़ी हैं कि पुलिस के किसी भी गलत कारनामे के लिए उन्हें सजा नहीं दी जा सकेगी.

सरकारी बलों के साथ सशस्त्र मुठभेड़ में बुरहान वानी और दो अन्य हिजबुल-मुजाहीदीन आतंकवादियों के मारे जाने के बाद जुलाई में जम्मू और कश्मीर में हिंसक विरोध प्रदर्शन भड़क उठे. अब तक कुल 90 से अधिक प्रदर्शनकारी और दो पुलिस अफसर मारे गए हैं और सैकड़ों घायल हुए हैं. अर्धसैनिक इकाई केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल ने शॉट गन, जिससे पैलेट छोड़े जाते हैं और जिससे सैकड़ों लोगों की आँखें जख्मी हुई हैं, के इस्तेमाल का बचाव किया. यहाँ तक कि रिज़र्व पुलिस बल ने जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय को बताया कि "विरोध के स्वरूप को देखते हुए मानक परिचालन प्रक्रियाओं का पालन करना मुश्किल है."

माओवादी विद्रोहियों के खिलाफ अभियान चला रहे सुरक्षा बलों पर यौन उत्पीड़न सहित गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगातार लगते रहे हैं. कई आदिवासी ग्रामीणों को मनमाने ढंग से माओवादी समर्थकों के नाम पर गिरफ्तार किया गया है. जुलाई में, ओडिशा में सुरक्षा बलों ने दो वर्षीय बच्चे सहित पांच आदिवासी ग्रामीणों को मार डाला और दावा किया कि वे माओवादी विरोधी अभियान के दौरान दोनों तरफ से हुई गोलीबारी में मारे गए. इस दावे पर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने संदेह प्रकट किया है. जून में छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में सशस्त्र माओवादियों के साथ कथित गोलीबारी में 21 वर्षीय आदिवासी युवती मडकम हिडके की हत्या कर दी गई. परिवार के सदस्यों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि मडकम को सुरक्षा कर्मियों ने उसके घर से जबरन उठाया, उसके साथ गैंग रेप किया और फिर उसे मार डाला. अगस्त में, छत्तीसगढ़ के बस्तर में सुरक्षाकर्मियों ने एक 1 9 वर्षीय युवा की हत्या कर दी, कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि यह एक गैर-न्यायिक हत्या थी.

दलित, आदिवासी समूहों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ बर्ताव

हिन्दू निगरानी दलों ने मुसलमान और दलितों पर इस संदेह में हमले किए कि उन्होंने बीफ के लिए गायों का क़त्ल किया, इनकी चोरी की या इन्हें बेचा. कई भाजपा नेताओं और उग्र हिंदू समूहों द्वारा गौरक्षा और बीफ़ के उपभोग पर रोक लगाने के आक्रामक अभियान के बीच ऐसी हिंसक वारदातें सामने आई हैं.

मार्च 2016 में झारखंड में, 35 वर्षीय मुस्लिम मवेशी व्यापारी मोहम्मद मजलुम अंसारी और 12 वर्षीय लड़के मोहम्मद इम्तियाज खान के शव पेड़ से लटके हुए पाए गए, उनके हाथ पीछे बंधे हुए थे और उनके शरीर पर चोटों के निशान थे. अगस्त में, राष्ट्रवादी हिंदू समूह के सदस्यों ने कर्नाटक में गायों की ढुलाई के दौरान एक शख्स को मारा दिया. जुलाई में, गौ हत्या के संदेह में गुजरात में चार पुरुषों को नंगा कर कार से बांधा गया और फिर सार्वजनिक रूप से डंडों और बेल्ट से उन्हें पीटा गया.

उग्र समूहों पर लगाम लगाने में सरकार की असफलता के साथ-साथ कुछ बीजेपी नेताओं द्वारा की गई भड़काऊ टिप्पणी से यह धारणा बनी है कि नेतागण बढ़ती असहिष्णुता के प्रति उदासीन हैं.

अल्पसंख्यकों के मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रिपोर्टर द्वारा जाति आधारित भेदभाव पर 2016 की रिपोर्ट में कहा गया है कि जाति प्रभावित समूह अभी भी बहिष्कार और अमानवीकरण झेल रहे हैं. जनवरी में, 25 वर्षीय दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या ने भारतीय समाज में जड़ जमाए जाति आधारित भेदभाव पर नए सिरे से लोगों का ध्यान आकर्षित किया और इसने उच्च शिक्षा में सुधार के लिए छात्रों और एक्टिविस्ट समूहों के राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों को आवेग दिया.

जून में गुजरात की एक विशेष अदालत ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान अहमदाबाद के एक मुस्लिम मोहल्ला गुल्बर्ग सोसाइटी में हिंदू भीड़ द्वारा 69 लोगों की सामूहिक हत्या के मामले में 24 लोगों को दोषी ठहराया. फैसले सुनाते हुए अदालत ने हत्याओं को "सिविल सोसाइटी के इतिहास का सबसे काला दिन" बताया. लेकिन पीड़ितों के कुछ परिजनों, वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने वरिष्ठ भाजपा नेताओं और एक पुलिस अधिकारी को बरी किए जाने की आलोचना की.

अभिव्यक्ति की आज़ादी

सरकारी अधिकारियों की आलोचना करने या राज्य की नीतियों का विरोध करने वाले नागरिकों पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार राजद्रोह और आपराधिक मानहानि कानूनों का इस्तेमाल कर रही है. अभिव्यक्ति की आज़ादी पर आघात करते हुए सरकार ने 2016 में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मानहानि के लिए आपराधिक दंड बनाए रखने के पक्ष में दलील दी. अदालत ने इस  कानून को बरकरार रखा.

फरवरी में, अधिकारियों ने कथित राष्ट्रीय विरोधी भाषण के लिए दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में तीन छात्रों को राजद्रोह कानून के तहत गिरफ्तार किया. यह कार्रवाई केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्यों के शिकायतों पर की गई. इन गिरफ्तारियों के कारण राजद्रोह कानून के मनमानी इस्तेमाल का  व्यापक विरोध हुआ.

अगस्त में, दक्षिणी राज्य कर्नाटक में पुलिस ने एबीवीपी की शिकायत पर एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया. इसमें यह आरोप लगाया गया कि एमनेस्टी द्वारा कश्मीर में दुर्व्यवहार पर आयोजित एक बैठक में भारत विरोधी नारे लगाए गए. हालाँकि बाद में पुलिस ने कहा कि आरोपों की छानबीन के लिए उनके पास पर्याप्त सबूत नहीं हैं. उसी महीने, अभिनेता से राजनेता बनी एक नेत्री पर भी उनके द्वारा पाकिस्तान में मिली मैत्री और शिष्टाचार की प्रशंसा के बाद राजद्रोह का मामला दर्ज हुआ.

अगस्त में, कर्नाटक हाईकोर्ट ने कर्नाटक सरकार को "बिलकुल सनकी" बताया कि उसने तीन लोगों के खिलाफ राजद्रोह के अभियोग लगाए. इनमें दो ऐसे पूर्व पुलिसकर्मी भी थे जो ज्यादा वेतन और बेहतर कामकाजी परिस्थिति हेतु विरोध प्रदर्शन में शरीक हुए थे.

छत्तीसगढ़ में पत्रकारों, वकील और नागरिक समाज कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न और गिरफ्तारी की घटनाएँ हुई. मार्च में, एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि छत्तीसगढ़ में मीडिया सरकार, माओवादी विद्रोहियों और निगरानी समूहों के "भारी दबाव के बीच काम" कर रहा है.

नागरिक समाज और संगठन बनाने की स्वतंत्रता

सरकार या इसकी नीतियों की आलोचना या उन पर सवाल करने वाले संगठनों की वित्तीय मदद को रोकने और उनकी गतिविधियों में बाधा डालने के लिए मोदी सरकार ने नागरिक समाज संगठनों के विदेशी वित्त पोषण को नियमित करने वाले विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) का इस्तेमाल जारी रखा है. अप्रैल 2016 में, शांतिपूर्ण एकत्र होने और संगठन बनाने की आज़ादी के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रिपोर्टर मायना किआई ने एफसीआरए का विश्लेषण किया और कहा कि कानून द्वारा लागू प्रतिबंध और इसके नियम "अंतरराष्ट्रीय कानून, सिद्धांतों और मानकों के अनुरूप नहीं हैं."

मई में, सरकार ने लॉयर्स कलेक्टिव का एफसीआरए अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया. इस संगठन की शुरुआत पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह और स्वास्थ्य के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के पूर्व विशेष रिपोर्टर उनके पति आनंद ग्रोवर ने की थी. लॉयर्स कलेक्टिव ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार की नीतियों को चुनौती देने वाले मामलों में लोगों की सहायता करने के कारण सरकार संगठन को शक्तिहीन और कमजोर करने का प्रयास कर रही है. जून में, संयुक्त राष्ट्र के तीन विशेष रिपोर्टरों ने निलंबन पर चिंता जाहिर करते हुए बयान जारी किया और सरकार से एफसीआरए निरस्त करने की मांग की. नवंबर में, सरकार ने कई प्रमुख मानवाधिकार समूहों समेत 25 प्रमुख गैर-सरकारी संगठनों के एफसीआरए का नवीनीकरण करने से इनकार कर दिया.

जबकि अधिकारी एनजीओ पर प्रतिबंध कसने के लिए एफसीआरए का इस्तेमाल कर रहे थे, सरकार ने राजनीतिक दलों को विदेशी संस्थाओं से मिलनेवाले चंदे को पहले ही वैध करने के लिए मार्च में कानून में संशोधन कर लिया.

महिला अधिकार

बलात्कार और यौन उत्पीड़न के कुछ चर्चित मामलों में अभियोजन के बावजूद, 2016 में महिलाओं के सामूहिक बलात्कार, घरेलू हिंसा, एसिड हमलों और हत्याओं की नई रिपोर्टों ने महिलाओं की सुरक्षा में सुधार और ऐसे अपराधों की त्वरित पुलिस जांच सुनिश्चित करने हेतु  ठोस सरकारी कार्रवाई की आवश्यकता को सुर्ख़ियों में ला दिया है. विशेष रूप से विकलांग महिलाओं और लड़कियों को अपने खिलाफ हुई हिंसा के लिए न्याय पाने में बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है.

मार्च में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए कि ऐसे किसी भी पूजा स्थल पर महिलाओं का प्रवेश वर्जित नहीं किया जाए जहाँ पुरुषों को जाने की अनुमति है. निर्णय के बाद, राज्य के दो मंदिरों ने महिलाओं के लिए अपने गर्भ गृह का  दरवाजा खोल दिया. अगस्त में, उच्च न्यायालय ने एक और आदेश दिया कि महिलाओं को मुम्बई स्थित हाजी अली के मजार में प्रवेश करने की अनुमति दी जाए. यह लिखे जाने तक, सुप्रीम कोर्ट के पास एक मामला लंबित है जो यह तय करेगा कि केरल स्थित सबरीमाला आइप्पा हिंदू मंदिर में मासिक धर्म की उम्र की महिलाओं को प्रवेश करने की अनुमति मिलेगी या नहीं. सबरीमाला मंदिर उन कुछ हिंदू मंदिरों में है जो रजःस्वला महिलाओं को अशुद्ध बताकर 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश को वर्जित करता है. अप्रैल में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "ऐसे मामले में लैंगिक भेदभाव स्वीकार्य नहीं है."

अक्तूबर में, सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि तीन तलाक की प्रथा (जो मुस्लिम पुरुषों को तीन बार "मैं तुम्हें तलाक देता हूँ" कहकर अपनी पत्नी को एकतरफा तलाक देने का अधिकार देता है), और जो कि मुस्लिम पर्सनल लॉ का एक हिस्सा है, मौलिक संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और लैंगिक समानता को नकारता है. सरकार का बयान मुस्लिम वीमेंस क्वेस्ट फॉर इक्वलिटी और दूसरे संगठनों द्वारा दायर याचिकाओं के जवाब में आया  जिसमें तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है.

बाल अधिकार

जनवरी 2016 में, नया किशोर न्याय कानून लागू हो गया, इसके मुताबिक अब बलात्कार और हत्या जैसे गंभीर अपराधों के अभियुक्त 16 और 17 वर्ष के किशोरों पर वयस्कों की अदालत में मुकदमा चलाने की अनुमति मिल गई है. बाल अधिकार कार्यकर्ताओं और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के कड़े विरोध के बावजूद यह कानून लागू किया गया.

जुलाई में, संसद ने बाल श्रम के खिलाफ एक नए कानून को मंजूरी दी जो 14 साल से कम आयु के बच्चों के सभी प्रकार के नियोजन पर रोक लगाता है,  सिवाय सभी उम्र के उन बच्चों को छोड़कर जो ऐसे पारिवारिक उद्यमों में काम करते हैं, जहां ऐसे काम उनकी स्कूली शिक्षा में बाधा नहीं बनते. भारत के बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस कानून का विरोध यह कहते हुए किया कि शिक्षा अधिकार कानून के प्रभावी कार्यान्वयन के अभाव में यह कानून गरीब और वंचित समुदायों के बच्चों को शोषण के लिए खुला छोड़ देता है. उनका इस बात पर जोर है कि सबसे अधिक बाल श्रम अदृश्य रूप से परिवारों के भीतर व्याप्त है.

कश्मीर में जुलाई 2016 में शुरू हुए हिंसक विरोध के कारण बच्चों की पढाई में बाधा आई  क्योंकि स्कूलों को महीनों तक बंद करना पड़ा; कम-से-कम 32 स्कूलों को जला दिया गया और अर्धसैनिक बलों ने अस्थायी शिविरों की स्थापना के लिए बहुत से स्कूलों को अपने नियंत्रण में ले लिया.

यौन अभिमुखता और लैंगिक पहचान

फरवरी 2016 में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने दंड संहिता की धारा 377 को चुनौती देने वाली  याचिका को स्वीकार करते हुए मामले को पांच न्यायाधीशों की पीठ को सौंप दिया. औपनिवेशिक युग का प्रावधान, जिसे अदालत ने 2013 में बरकरार रखा था, समान लिंग के वयस्कों के बीच के संबंधों को अपराध मानता है. जून में, कई प्रसिद्ध एलजीबीटी पेशेवरों ने सर्वोच्च न्यायालय में  याचिका दायर की, जिसमें यह तर्क दिया गया कि धारा 377 जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है.

अगस्त में, सरकार ने संसद में ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों पर एक नया विधेयक पेश किया. हालाँकि, यह विधेयक त्रुटिपूर्ण था क्योंकि इसके प्रावधान 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ संगतिपूर्ण नहीं थे. उस फैसले में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी गई थी और नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में उन्हें आरक्षण के योग्य पाया गया था.

निःशक्त व्यक्तियों के अधिकार

कलंक माने जाने के कारण और पर्याप्त समुदाय आधारित समर्थन और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपस्थिति में भारत में मनोसामाजिक या बौद्धिक रूप से निःशक्त महिलाएं और लड़कियां अपनी सहमति के बिना भीड़ भरे और अस्वास्थ्यकर राजकीय मनो आरोग्शालाओं   तथा आवासीय संस्थानों में कैदी की तरह रहती हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में यह उजागर करने के बाद कि इन संस्थानों में ऐसी महिलाओं को किन-किन तरह के दुर्व्यवहारों का सामना करना पड़ता है, राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस मुद्दे पर अपना पहला अध्ययन किया.

भारतीय संसद के उच्च सदन ने अगस्त 2016 में एक नया मानसिक स्वास्थ्य विधेयक पारित किया. हालांकि, यह पूरी तरह से निःशक्त व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन के अनुरूप नहीं है और यह स्वीकार नहीं करता कि निःशक्त व्यक्तियों को अपनी कानूनी शक्ति का प्रयोग करने में जरुरी मदद पाने के लिए समुचित मानदंडों के साथ जीवन के सभी क्षेत्रों में दूसरों की तरह ही समान आधार पर कानूनी दर्जा प्राप्त है.

मौत की सजा

2016 में किसी को फांसी नहीं दी गई, लेकिन 385 कैदी फांसी की कतार में हैं. अधिकांश कैदी हाशिए के समुदायों या धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के हैं. भारतीय अदालतों ने माना है कि भारत में वंचित समूहों के खिलाफ विषमतापूर्वक और भेदभावपूर्ण तरीके से मौत की सजा लागू की गई है.

विदेश नीति

2016 में भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध बिगड़ गए. जुलाई में जम्मू और कश्मीर में नए सिरे से हिंसा फैलने के बाद, पाकिस्तान सरकार ने यूएन महासचिव से संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षण में   स्वतंत्र जांच और जनमत संग्रह की मांग की.

भारत सरकार ने पाकिस्तान के आरोपों और अनुरोध को खारिज कर दिया. उसने पाकिस्तान पर क्षेत्र में अशांति भड़काने और राज्य नीति के रूप में आतंकवाद का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया. इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने भाषण समेत अन्य भाषणों में बलूचिस्तान और पाकिस्तान द्वारा शासित कश्मीर में पाकिस्तान के "अत्याचार" के बारे में ध्यान दिलाया. सितंबर में तनाव और बढ़ गया जब भारत सरकार ने दावा किया कि जम्मू और कश्मीर में भारतीय सेना के एक अड्डे पर हुए हमले, जिसमें 19 सैनिक मारे गए थे, के जवाब में भारतीय सुरक्षा बलों ने पाकिस्तानी सीमा के अंदर आतंकवादी ठिकानों पर हमला किया.

संयुक्त राष्ट्र में अधिकारों के मुद्दों पर भारत के मतदान का रिकॉर्ड निराशाजनक रहा. मई में, अंतरराष्ट्रीय प्रेस आजादी समूह, कमिटि टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (पत्रकार सुरक्षा समिति) की संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक मान्यता के प्रस्ताव पर मतदान में सरकार ने भाग नहीं लिया. जुलाई में, सरकार ने उस प्रस्ताव का बहिष्कार किया जिसके आधार पर एलजीबीटी व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव समाप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ का पद सृजित हुआ और भारत ने अधिदेश (मैंडेट) को कमजोर करने के संशोधन के पक्ष में यह कहते हुए मतदान किया कि  हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक महिलाओं, समलैंगिक पुरुषों, उभयलिंगी और ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) के अधिकारों के मुद्दों पर अभी अपना फैसला नहीं दिया है.

भारत ने नेपाल पर एक ऐसे समावेशी संविधान को अपनाने का दवाब बनाया जिसमें भारतीय सीमा के साथ लगे दक्षिणी मैदानों के अल्पसंख्यक समूहों की आकांक्षाओं को जगह मिली है. भारत ने अल्पसंख्यक तमिलों की मांगों को पूरा करने के लिए श्रीलंका पर दवाब जारी रखा है.

भारत और अमेरिका ने सुरक्षा सहयोग मजबूत किया. जुलाई में, मोदी ने अमेरिकी कांग्रेस के एक संयुक्त सत्र को संबोधित किया, जिसमें जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद से मुकाबला करने के लिए साझा प्रतिबद्धता का जिक्र किया गया.

अक्टूबर में, भारत ने ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) शिखर सम्मेलन की मेजबानी की. प्रधानमंत्री ने सुरक्षा चुनौतियों और आर्थिक अनिश्चितताओं का मुकाबला करने के लिए साझेदारी करने की बात कही, जबकि उनके संबोधन में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार उसूलों के अनुपालन के लिए काम करने का कोई उल्लेख नहीं था.

अक्टूबर 2016 में, भारत ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते की अभिपुष्टि की. दिसंबर 2015 में 195 देशों ने इस समझौते का अनुमोदन किया था.

प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय क़िरदार

जुलाई 2016 में मोदी की वाशिंगटन यात्रा के दौरान अमेरिकी कांग्रेस के एक आयोग ने भारत में मानवाधिकारों की स्थिति पर सुनवाई की. सुनवाई में मुस्लिम और ईसाई जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों और हाशिये पर रहने वाले समुदायों के खिलाफ हिंसा के मुद्दे छाए रहे.

अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग ने 2016 की एक रिपोर्ट में कहा कि भारत में धार्मिक सहिष्णुता की "बदतर स्थिति" है और "धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन" बढ़ गया है. जून में भारत की अपनी यात्रा के दौरान अमेरिकी सीनेटर और सीनेट की विदेश संबंध समिति के वरिष्ठतम सदस्य बेन कार्डिनन ने देश में धार्मिक असहिष्णुता, धर्म परिवर्तन कानूनों और गैर-न्यायिक हत्याओं पर चिंता व्यक्त की. अगस्त में, अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने अपनी भारत यात्रा के दौरान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण विरोध के अधिकारों की हिफ़ाजत  करने पर जोर दिया.

मार्च में हुए भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन में, जिसमें मोदी और यूरोपीय परिषद एवं यूरोपीय आयोग के प्रमुखों ने भाग लिया था, नेताओं ने सम्मेलन के बाद एक संयुक्त वक्तव्य में "लैंगिक समानता और महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकारों के लिए सम्मान सुनिश्चित करने के प्रयासों की आवश्यकता पर जोर दिया."

अगस्त में, संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त जैद राद अल हुसैन ने तथ्यान्वेषण के लिए जम्मू और कश्मीर दौरे के वास्ते भारतीय और पाकिस्तानी सरकारों द्वारा उनके कार्यालय को इज़ाज़त नहीं देने पर खेद व्यक्त किया. उन्होंने कहा, "पहुंच कायम किए बगैर, हम केवल सबसे बुरे नतीजों का इंतज़ार कर सकते हैं."