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Abdul Kareem, a Rohingya Muslim, carries his mother, Alima Khatoon, to a refugee camp after crossing from Burma into Bangladesh on Sept. 16, 2017.

साक्षात्कार: नरसंहार से रोहिंग्याओं की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय अदालत का ऐतिहासिक फैसला

कैसे एक छोटे से अफ्रीकी देश ने म्यांमार संकट को चुनौती दी और जीत हासिल की

16 सितंबर, 2017 को म्यांमार पार कर बांग्लादेश आने के बाद अपनी मां अलीमा खातून को  शरणार्थी शिविर ले जाता हुआ एक रोहिंग्या मुसलमान अब्दुल करीम.  © 2017 डार यासीन/एपी

On January 23, 2020, the International Court of Justice (ICJ) in The Hague ordered Myanmar to take all necessary measures to protect Rohingya Muslims from genocide. In late 2017, Myanmar’s military massacred tens of thousands of Rohingya, committed widespread rape, and torched dozens of villages. The campaign of ethnic cleansing forced 740,000 Rohingya to flee to Bangladesh, but 600,000 remained in Myanmar, where they “may face a greater threat of genocide than ever,” a United Nations-backed fact-finding mission said. The associate director of Human Rights Watch’s international justice program, Param-Preet Singh, tells Amy Braunschweiger how this court order is a first – but huge – step to hold Myanmar accountable for its atrocities against the Rohingya.

23 जनवरी, 2020 को, हेग में अंतर्राष्ट्रीय अदालत (आईसीजे) ने म्यांमार को आदेश दिया कि वह रोहिंग्या मुसलमानों को नरसंहार से सुरक्षा देने के लिए सभी आवश्यक उपाय करे. 2017 के अंत में, म्यांमार सेना ने दसियों हज़ार रोहिंग्याओं का क़त्लेआम, बड़े पैमाने पर बलात्कार और दर्जनों गांवों को आग के हवाले कर दिया था. संयुक्त राष्ट्र समर्थित फैक्ट-फाइंडिंग मिशन ने पाया कि नस्ली संहार अभियान ने 7 लाख 40 हजार रोहिंग्याओं को बांग्लादेश भागने के लिए मज़बूर का दिया, लेकिन म्यांमार में अभी 6 लाख रोहिंग्या बचे हुए हैं, जहां उन पर “पहले से कहीं ज्यादा नरसंहार का खतरा मंडरा रहा है.” ह्यूमन राइट्स वॉच के अंतरराष्ट्रीय न्याय कार्यक्रम के सहायक निदेशक परमप्रीत सिंह ने एमी ब्राउनश्वीगर को एक साक्षात्कार में बताया कि अदालत का यह आदेश कैसे पहला, लेकिन रोहिंग्या के खिलाफ अत्याचार के लिए म्यांमार को जवाबदेह ठहराने वाला एक बड़ा कदम है.

 

एक साल पहले आईसीजे में म्यांमार को जवाबदेह ठहराने के लिए आपने एक खास किस्म के रास्ते पर चलना शुरू किया. आखिर यह विचार कैसे आया?

यह विचार कि अपराधों से बिना किसी सीधे संबंध वाला कोई देश ऐसे मामले को अंतर्राष्ट्रीय अदालत में ला सकता है, इस पर पहले कभी अमल नहीं किया गया. हालांकि, तकनीकी रूप से, 1948 के नरसंहार समझौते का कोई भी सदस्य राज्य ऐसा कर सकता है. मगर तथ्य यह है कि कोई भी बड़ा, समृद्ध देश आगे नहीं आया बल्कि एक छोटा सा अफ्रीकी देश गाम्बिया, जो 20 वर्षों से अधिक समय की तानाशाही से उबर रहा है, अपने नेतृत्व को और अधिक प्रेरणादायी बना रहा है.

म्यांमार का हालिया नस्ली संहार अभियान शुरू हुए अब दो साल से अधिक हो गया है, और रोहिंग्याओं के खिलाफ सैन्य अत्याचार वर्षों से जारी है. अब तक कोई नतीज़ा क्यों नहीं निकला?

म्यांमार में रोहिंग्या नस्लीय समूह के साथ लंबे अरसे से क्रूर बर्ताव ठीक उसी तरह का संकट है जिसे संबोधित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) बनाया गया था. आईसीसी गंभीर अंतरराष्ट्रीय अपराधों के लिए व्यक्तियों की कानूनी जांच करता है, जबकि आईसीजे देशों के बीच विवादों पर निर्णय करता है. लेकिन चूंकि म्यांमार आईसीसी का सदस्य नहीं है, केवल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद उसके मामले को आईसीसी में भेज सकता है. मगर ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि चीन ने म्यांमार के मित्र राष्‍ट्र और उसके ढाल के रूप में काम किया है, और सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में वह किसी भी प्रस्ताव को वीटो कर सकता है. चीन के वीटो के अंतर्निहित खतरे ने मानवाधिकार पर म्यांमार के बेहद खराब रिकॉर्ड की आलोचना को दबा दिया और मामले को आईसीसी के पास भेजे जाने से अब तक बचाए रखा.

आईसीजे के समक्ष इस मामले को लाने के लिए आपको एक देश चाहिए था. वह कैसे हुआ?

जब हमने न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र कार्यालय और कनाडा में और अन्य देशों, जिन्होंने रोहिंग्याओं के नरसंहार के खिलाफ आवाज़ बुलंद की थी, के साथ पहली बार इस मामले को उठाना शुरू किया, तो उन्होंने कहा, यह एक रचनात्मक, दिलचस्प विचार है लेकिन यह मुमकिन नहीं. हमने यूरोप, अफ्रीका, एशिया और अमेरिका के उन देशों से संपर्क किया जिन्होंने नरसंहार समझौते का अनुमोदन किया था.

फिर अचानक से, पश्चिम अफ्रीकी देश गाम्बिया ने इस दिशा में आगे बढ़ने का अपना इरादा सार्वजनिक किया. काश, हम इसका श्रेय ले पाते! रोहिंग्या को न्याय दिलाने में गाम्बिया के न्याय मंत्री अबुबकर तम्बाडू की दूरदर्शिता, नैतिक साहस और नेतृत्व वास्तव में प्रेरणादायक है. गाम्बिया ने दुनिया के सामने प्रदर्शित कर दिया कि उसमें म्यांमार के क्रूर नस्ली संहार अभियान को चुनौती देने का साहस है और ऐसा करते हुए वह चीन के कोपभाजन का शिकार बनने का खतरा उठा सकता है.

गाम्बिया के कदम बढ़ाने के फैसले ने दुनिया भर के देशों तक पहुंचने के हमारे प्रयासों को नया आवेग दिया, क्योंकि अब हम मामले को आगे बढ़ाने के लिए उनसे गाम्बिया का समर्थन करने के लिए कह रहे थे.

गाम्बिया ने दो दशक की क्रूर तानाशाही से अभी उबरना ही शुरू किया है. ऐसे में उसने यह चुनौती क्यों पेश की?

गाम्बिया के न्याय मंत्री तम्बाडू ने 1994 के रवांडा नरसंहार संबंधी मुकदमों में अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायाधिकरण में रवांडा के लिए अभियोजक के रूप में काम किया था. इस्लामिक सहयोग संगठन के वार्षिक सम्मेलन में अपने देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए अंतिम समय  भेजे जाने पर अप्रत्याशित रूप से बांग्लादेश पहुंचने पर उन्होंने बांग्लादेश के कॉक्स बाजार शिविर में रोहिंग्या शरणार्थियों से मुलाकात की. वह कहते हैं कि उनकी कहानियां सुनाने के बाद, यह स्पष्ट था कि उन्होंने नरसंहार को झेला है. और इस मामले में कुछ करने के लिए वह नैतिक रूप से मजबूर हो गए.

 

रखाईन राज्य में म्यांमार सेना के नस्ली संहार अभियान की दूसरी सालगिरह मनाने की खातिर  बांग्लादेश के कॉक्स बाजार के उखिया स्थित कुटुपालोंग शरणार्थी शिविर के एक खुले मैदान में एकत्रित रोहिंग्या शरणार्थी, 25 अगस्त, 2019. © केएम असद/ लाइट राकेट वाया गेट्टी इमे

 

रखाईन राज्य में म्यांमार सेना के नस्ली संहार अभियान की दूसरी सालगिरह मनाने की खातिर  बांग्लादेश के कॉक्स बाजार के उखिया स्थित कुटुपालोंग शरणार्थी शिविर के एक खुले मैदान में एकत्रित रोहिंग्या शरणार्थी, 25 अगस्त, 2019. 

© केएम असद/ लाइट राकेट वाया गेट्टी इमेजेज

दिसंबर में आईसीजे की सुनवाई के लिए हेग में मौजूद रहने का अनुभव कैसा था ?

हमने कुछ रोहिंग्या कार्यकर्ताओं को हेग बुलाया और उनके साथ बिताए गए पल वास्तव में दिल को छू लेने वाले थे. उन्होंने महसूस किया कि आख़िरकार अंतरराष्ट्रीय अदालत उन्हें मान्यता दे  रही है जबकि उनकी सरकार ने उन्हें मिटाने की पूरी कोशिश की. इस घटना ने उन्हें अन्दर से तोड़ तो दिया लेकिन फिर उठने की ताकत भी दी.

अदालत की इमारत के बाहर, रोहिंग्या और म्यांमार सरकार समर्थक, दोनों तरफ से प्रदर्शन किए गए और खूब नारेबाज़ी की गई. म्यांमार के वास्तविक नेता और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू ची द्वारा अदालत में व्यक्तिगत रूप से सेना का बचाव करने के फैसले से वहां एक और स्तर की तहकीकात की जाने लगी, साथ ही वहां और अधिक प्रदर्शनकारी और मीडिया का जुटान हो गया.

रोहिंग्या कार्यकर्ताओं ने बताया कि वे सू ची से छला हुआ महसूस करते हैं, जिन्होंने अपनी लोकतंत्र समर्थक सक्रियता के लिए तत्कालीन सैन्य सरकार की नज़रबंदी में कई साल बिताए हैं.  उन्होंने मुझे कहा कि उन्हें पहले कभी उम्मीद थी कि वह उनकी रक्षा करेंगी, लेकिन इसके बजाय वह सेना का बचाव कर रही थी.

अदालत में आंग सान सू ची द्वारा म्यांमार सेना के बचाव का क्या महत्व है?

यह तथ्य कि वह हेग गईं और एक अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ सैन्य कार्रवाई का खुद बचाव किया, बताता है कि अदालत में उन्होंने पूरी दुनिया के सामने सैन्य अत्याचारों को स्वीकार किया है. वह पीड़ितों के बजाय अपराधियों के साथ खड़ी हैं.

 

नीदरलैंड्स के हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय अदालत (आईसीजे) में अल्पसंख्यक मुस्लिम रोहिंग्या आबादी के खिलाफ म्यांमार के नरसंहार के आरोप संबंधी गाम्बिया द्वारा दायर मामले की सुनवाई में भाग लेते हुए गाम्बिया के न्याय मंत्री अबूबकर तम्बाडू और म्यांमार की नेता आंग

 

नीदरलैंड्स के हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय अदालत (आईसीजे) में अल्पसंख्यक मुस्लिम रोहिंग्या आबादी के खिलाफ म्यांमार के नरसंहार के आरोप संबंधी गाम्बिया द्वारा दायर मामले की सुनवाई में भाग लेते हुए गाम्बिया के न्याय मंत्री अबूबकर तम्बाडू और म्यांमार की नेता आंग सान सू ची, 10 दिसंबर, 2019. 

© 2019 रायटर्स/यव्स हरमन

अदालत के आदेश का रोहिंग्या के लिए क्या मायने हैं? और अंतर्राष्ट्रीय न्याय के लिए इसके क्या मायने हैं? 

आईसीजे ने म्यांमार को नरसंहार रोकने का आदेश दिया है, और इससे देश में बाकी बच गए 6 लाख रोहिंग्याओं की सुरक्षा पर सचमुच असर पड़ सकता है. इसके अलावा, आईसीजे प्रक्रिया का मतलब है कि अब रोहिंग्या उत्तरजीवियों और कार्यकर्ताओं के पास अपने अनुभवों को मान्यता दिलाने के लिए एक मंच है.

आईसीजे का आदेश एक सशक्त चेतावनी है कि म्यांमार को नरसंहार समझौते और अन्य अंतरराष्ट्रीय संधियों के तहत अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए शक्तिशाली देशों - विशेष रूप से चीन - के भरोसे नहीं रहना चाहिए. इससे यह भी उम्मीद जगी है कि जब तक गाम्बिया जैसे देश कदम उठाने को तैयार हैं, अंतरराष्ट्रीय न्याय सुनिश्चित हो सकता है.

क्या अदालत का आदेश लागू हो सकता है?

आईसीजे ने कानूनी रूप से बाध्यकारी निर्णय दिया है, लेकिन म्यांमार के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए इसे लागू करना मुश्किल हो सकता है. दुनिया को यह बताना होगा कि आदेश लागू नहीं करने की स्थिति में म्यांमार को राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ेगी और यह दिखाना होगा कि बहुत से देश उस पर नज़र रख रहे हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच सरकारों से आग्रह करेगा कि रोहिंग्या की स्थिति सुधारने के लिए म्यांमार के साथ अपने राजनयिक प्रभाव का इस्तेमाल  करें. हम अदालत के आदेश की तामील के वास्ते म्यांमार को कड़ा संदेश देने के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रस्तावों को भी बढ़ावा देंगे. सुरक्षा परिषद भी आदेश को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, लेकिन चीन की वीटो शक्ति के कारण मुझे इसकी उम्मीद नहीं है. इस संबंध में, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस, जिन्होंने आईसीजे के फैसले के समर्थन में एक कड़ा बयान जारी किया और अतीत के  रोहिंग्या संकट पर सुरक्षा परिषद से कार्रवाई का आग्रह किया, एक अहम किरदार हो सकते हैं.

 

कॉक्स बाजार स्थित एक शिविर में रोहिंग्या शरणार्थी, बांग्लादेश, 1 जनवरी, 2019. © 2019 एपी फोटो

 

कॉक्स बाजार स्थित एक शिविर में रोहिंग्या शरणार्थी, बांग्लादेश, 1 जनवरी, 2019. 

© 2019 एपी फोटो

आगे क्या होगा?

अब आईसीजे मामले के गुण-दोष अर्थात् म्यांमार ने रोहिंग्या के खिलाफ नरसंहार किया था या नहीं, पर दोनों पक्षों की दलीलें सुनेगा. यह एक बहुत लम्बा रास्ता है और इस मामले की तहें खुलने में कई साल लगेंगे और इसका नतीज़ा भी तय नहीं है. लेकिन अदालत का यह आदेश   और अपेक्षा कि म्यांमार आदेश के कार्यान्वयन पर हर छह माह पर नियमित रूप से रिपोर्ट करे - यह स्पष्ट करता है कि अदालत मामले को बहुत गंभीरता से ले रही है और इसकी जांच टलने नहीं जा रही है. और इससे म्यांमार में बचे रोहिंग्याओं की सुरक्षा में बहुत मदद मिल सकती है.

आप फैसला सुनने के लिए न्यूयॉर्क में अहले सुबह 3:30 बजे उठे और ह्यूमन राइट्स वॉच की प्रतिक्रिया को अंतिम रूप दिया. क्या आपने यह उम्मीद की थी?

यह सब सपने जैसा लगता है. मुझे ऐसा लग रहा था कि अदालत एक अनुकूल फैसला सुनाएगी, लेकिन 17 न्यायाधीशों का सर्वसम्मति से फैसला अविश्वसनीय है. यह फैसले को वजनदार बना देता है. सब कुछ शुरू होने से पहले घबराहट का एक क्षण आया था, और मैं सोचने लगी थी कि अगर वे गाम्बिया के खिलाफ फैसला देते हैं तो क्या होगा? हम अपने रोहिंग्या साथियों से क्या कहेंगे? और व्यवस्थापन से जुड़े पहलू भी थे - तेज़ी से प्रेस विज्ञप्ति जारी करना, मीडिया संस्थानों के फोन कॉल्स का जवाब देना, और रोहिंग्या, गाम्बिया और अंतर्राष्ट्रीय न्याय के लिए इस महत्वपूर्ण जीत के बारे में दुनिया को बताने के लिए सोशल मीडिया पर टिप्पणी करना.

जब, फैसले के अंत में, मुख्य न्यायाधीश ने “सर्वसम्मति से” कहा, तो उन्हें यह कहते हुए मैंने चार बार सुना - इस तरह वास्तव में उन्होंने बहुत मज़बूती से अपना फैसला सुनाया.

अगर आपने मुझे एक साल पहले बताया होता कि हम यहां तक पहुंच जाएंगे, तो मैंने आपको अति उत्साही कहा होता. लेकिन यही तो हमारा काम है, है न? चीजों को अंजाम तक पहुंचाने  के लिए अपनी तरफ से कोशिश करना और उत्तरजीवियों को ऐसे न्याय दिलाने में मदद करना जिसके सचमुच में वे हकदार हैं.

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