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भारत : मानवाधिकारों के मामले में पीछे खिसक रहा है

नागरिक समाज, महिलाओं और उत्पीड़न के प्रति जवाबदेही के मामले में स्थिति बदतर हुर्इ है

(लंदन) - आज अपनी विश्व रिपोर्ट 2013का विमोचन करते हुए ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि भारत में नागरिक समाज की सुरक्षा, महिलाओं के विरुद्ध यौन हिंसा, और लंबे समय से उत्पीड़नों के लिए सरकारी अधिकारियों को जवाबदेह मानने में विफलता के कारण मानवाधिकारों की स्थिति गंभीर रूप लेते हुए बदतर हो गर्इ है. हालांकि सरकार ने बच्चों को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा के लिए नया कानून बनाने और अन्य देशों में मानवाधिकारों के संरक्षण हेतु अंतर्राष्ट्रीय प्रस्तावों का पुरजोर समर्थन करने सहित कुछ क्षेत्रों में प्रगति की है.

अपनी 665पृष्ठों की रिपोर्ट में ह्यूमन राइट्स वॉच ने अरब स्प्रिंग के बाद की स्थिति के एक विश्लेषण सहित पिछले वर्ष के दौरान 90से अधिक देशों में मानवाधिकारों के मामले में हुर्इ प्रगति का मूल्यांकन किया है.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि जब तक देश में दंड से छूट की परंपरा बनी रहती है, तब तक भारत के सुरक्षा बलों द्वारा किए जा रहे घोर उत्पीड़नों का अंत करने के प्रयास बाधित होते रहेंगे. सरकार ने उत्पीड़नकारी सशस्त्र सेना विशेष अधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) को रद्द नहीं किया, जो गंभीर मानव अधिकार उल्लंघन करने वाले सैनिकों को प्रभावी छूट प्रदान करता है. 2013में एक बार फिर हिरासत में यातना रोकने के लिए और यातना करने वाले को जवाबदेह मानने वाला कानून नहीं बनाया गया.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि सरकार अभी भी अनेक मुद्दों पर आलोचकों को चुप कराने के लिए औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून एवं अन्य कानूनों का उपयोग कर रही है. इनमें उसके द्वारा माओवादी उग्रवाद से लेकर दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र के विरोध प्रदर्शन से निपटना शामिल था. विरोध प्रदर्शित करने के लिए सोशल मीडिया के उपयोग के बारे में बढ़ती चिंताओं के कारण इंटरनेट की स्वतंत्रता पर नए प्रतिबंध लगाए गए. और सरकार ने घरेलू संगठनों को आर्थिक सहायता मिलने से रोकने के लिए विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम का उपयोग करना जारी रखा.

ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशियार्इ निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, ''अभी भी भारत सरकार गैर-जिम्मेदार सुरक्षा बलों और दंड से मुक्ति वाले कानूनों के कारण होने वाले गंभीर नुकसान को नहीं मान रही है. जहां एक ओर शीर्ष अधिकारी अक्सर विकासशील लोकतंत्र के रूप में भारत के जीवंत एवं स्वतंत्र सिविल सोसायटी की चर्चा करते हैं,  वहीं दूसरी ओर सरकार असंतोष को दबाने के लिए कठोर कानूनों का बढ़-चढ़ कर प्रयोग कर रही है.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि भारत के संघर्ष वाले क्षेत्रों में सरकार और विरोधी बलों दोनों ही के द्वारा उत्पीड़न किया गया. जहां एक ओर पिछले दो वर्षों से जम्मू और कश्मीर में हिंसा के स्तर में गिरावट दर्ज की गर्इ है, वहीं दूसरी ओर इस विवादित राज्य में किसी भी चुनाव का विरोध करने वाले सशस्त्र अलगाववादी आतंकवादियों से मिली धमकियों एवं हमलों के कारण कर्इ निर्वाचित ग्राम परिषदों के नेताओं ने इस्तीफा दे दिया. माओवादी विद्रोह वाले क्षेत्रों में ग्रामीणों को माओवादियों और राज्य सुरक्षा बलों, दोनों से ही खतरा बना रहा. पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में हिंसा जारी रही, जबकि असम में स्वदेशी बोडो जनजातियों और प्रवासी मुसलमान बाशिंदों के बीच हिंसा के कारण कम से कम 97लोग मारे गए और 450,000से अधिक लोग विस्थापित हो गए.

यौन उत्पीड़न की घटनाओं में वृद्धि के साथ-साथ महिलाओं के विरुद्ध हिंसा बेरोकटोक जारी रही. विश्व रिपोर्ट 2013के प्रेस में जाने के बाद 16दिसंबर को नर्इ दिल्ली में 23वर्षीया छात्रा के सामूहिक बलात्कार एवं बाद में उसकी मृत्यु की घटना के खिलाफ भारत भर के शहरों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए.  

सुश्री गांगुली ने कहा कि ''दिल्ली में सामूहिक बलात्कार पर वैश्विक निंदा से भारतीय नेतृत्व को यह संदेश जाना चाहिए कि वह यौन हिंसा के सभी स्वरूपों का अपराधीकरण करने और महिलाओं की गरिमा एवं अधिकारों की रक्षा करने के लिए बहुत समय से लंबित सुधारों को लाए. भारत के कानूनों को लागू करने हेतु जरूरी संसाधनों और उन अधिकारियों को जवाबदेह बनाने की तत्काल आवश्यकता है जो संवेदनशील तरीके से अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर रहे हैं. 

गत नवंबर में, भारत में दांडिक न्याय एक कदम पीछे हटा जब सरकार ने फांसी न देने के आठ वर्षों के अघोषित स्थगन को खत्म करते हुए नवंबर, 2008के मुंबर्इ हमले के अभियुक्त पाकिस्तानी नागरिक अजमल कसाब को फांसी दे दी. कुछ राजनेताओं ने मौत की सजा पाए अन्य लोगों को भी फांसी देने के लिए फिर से आवाज उठार्इ तथा बलात्कारियों को फांसी देने की मांग की.

एक सकारात्मक कदम के रूप में संसद ने बच्चों की यौन-उत्पीड़न से सुरक्षा के लिए एक नया कानून पारित किया और सरकार ने 14वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को जोखिम भरे कामों के अलावा भी कर्इ उद्योगों में नौकरी पर रखने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की इच्छा व्यक्त की. सरकार ने असाध्य रोगों के कारण पीड़ा एवं अन्य लक्षणों से जूझ रहे लाखों लोगों के कष्ट को कम करने के लिए चिकित्सा देखभाल केंद्रों, खासकर कैंसर उपचार केंद्रों में दर्दनिवारक देखभाल को बढ़ावा देने की दिशा में उल्लेखनीय कार्रवार्इ की.

गुजरात में वर्ष 2002के खूनी दंगों के अनेक संदिग्धों पर मुकदमा चलाए जाने के रूप में दंगे के कुछ पीड़ितों एवं पीड़ित परिवारों को अंतत: न्याय मिला जिसके फलस्वरूप पिछले वर्ष 75से अधिक लोग दोषी करार दिए गए. इनमें एक उग्रवादी हिंदू संगठन बजरंग दल की नेता और पूर्व मंत्री माया कोडनानी को अपराधी सिद्ध किया जाना भी शामिल है.

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, भारत ने अन्य देशों में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने वाले संयुक्त राष्ट्र के अनेक प्रस्तावों का समर्थन किया, जिसमें से सबसे अधिक उल्लेखनीय श्रीलंका है. परंपरागत रूप से तथाकथित युद्ध अपराधों और अन्य उत्पीड़नों के लिए श्रीलंका सरकार की सार्वजनिक रूप से आलोचना करने से परहेज करने की पहले की नीति से हटते हुए भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका में युद्ध के उपरांत सुलह एवं जवाबदेही के प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया. सीरिया के मामले में भी उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के उन प्रस्तावों के पक्ष में मतदान किया जो वहां बढ़ती हिंसा से संबद्ध थे.

सुश्री गांगुली ने कहा कि, ''सार्वभौम मानवाधिकारों को समर्थन एवं सम्मान करने के भारत सरकार के दायित्वों को भारत की सीमाओं के भीतर ही नहीं रुक जाना चाहिए. भारत, विदेशों में पीड़ितों के पक्ष में दृढ़ता से आवाज उठाते हुए अपने देश में भी मानवाधिकारों की स्थिति में सुधार कर सकता है, और उसे करना भी चाहिए. 

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