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भारत: खनन उद्योग नियंत्रण के बाहर

सरकारी निरीक्षण की कमी समुदाय को नुकसान पहुँचाती है, भ्रष्टाचार बढ़ाती है

(पणजी) – ह्यूमन राइट वॉच ने आज जारी एक रिपोर्ट में कहा कि भारत सरकार देश के खनन उद्योग में प्रमुख मानवाधिकारों और पर्यावरण सुरक्षा मानकों को लागू करने में असफल रही है⃓

70-पृष्ठ की रिपोर्ट, “नियंत्रण के बाहर: भारत में खनन, विनियामक विफलता और मानवाधिकार” से पता चलता है प्रमुख नीतियों की डिज़ाइन और उसके कार्यान्वयन की जड़ तक फैली कमियों ने खनन संचालको को प्राभावी रूप से अपने आप निरीक्षण करने के लिए छोढ़ दिया है⃓इसने भारत के घोटाला-ग्रस्त खनन उद्योग में व्यापक अराजकता को बढ़ावा दिया और यहखनन-प्रभावित समुदायों को गंभीर नुकसान पहुँचाता है⃓ह्यूमन राइट वॉच ने उन आरोपों का दस्तावेज़ीकरण किया है कि गैर-ज़िम्मेदार खनन संचालन के कारण इन समुदायों के स्वास्थ्य, जल, वातावरण और जीविका को नुकसान पहुँचा है⃓

“सरकार द्वारा उचित निरीक्षण कार्य न होने के कारण खनन संचालन अक्सर व्यापक रूप से विनाशकारी साबित होते हैं,” मीनाक्षी गांगुली (Meenakshi Ganguly), ह्यूमन राइट वॉच की दक्षिण एशिया निर्देशक ने बताया⃓“भारत में खनन-प्रभावित समुदायों को नुकसान से बचाने के लिए कानून पुस्तकों में कानून मौजूद हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन का पूरी तरह से पतन हो गया है⃓”

ह्यूमन राइट वॉच को मिली जानकारी के अनुसार, भारत सरकार यह पता लगाने में प्रणालीबद्ध तरह से विफल रही है कि देश के 2,600 अधिकृत खनन संचालन भारतीय कानूनों के अंतर्गत प्रमुख मानवाधिकारों और पर्यावरण सुरक्षा मानकों का पालन करते हैं या नहीं⃓यह समस्याएँ खनन उद्योग के उच्च-प्रोफ़ाइल भ्रष्टाचार के आरोपों की शृंखला से संबंधित होने के साथ उसे बढ़ावा भी दिया है , जिसने हाल के वर्षों में भारत हिलाकर रख दिया है⃓खनन उद्योग के अवैध कार्यों ने राज्य सरकारों को बुरी तरह से आवश्यक राजस्व से वंचित किया, बहुत महंगे और अप्रत्याशित काम-बंदी जैसी समस्याओं के साथ उद्योग को धमकी दी और ऐसी राजनीतिक अव्यवस्था उत्पन्न की , जिसके कारण 2011 और 2012 में दो राज्य सरकारें गिर चुकी हैं⃓

ह्यूमन राइट वॉच रिपोर्ट आंशिक रूप से गोवा और कर्नाटक के राज्यो के साथ नई दिल्ली के 80 से अधिक लोगों के साक्षात्कारों पर आधारित है, जिसमें प्रभावित समुदायों के निवासी, कार्यकर्ता, खनन कंपनी और सरकारी अधिकारी शामिल हैं⃓

गोवा और कर्नाटक के किसानों ने ह्यूमन राइट वॉच को बताया कि खनन संचालनों ने जल-स्रोत और भूजल आपूर्ति को नष्ट या प्रदूषित कर दिया है⃓अधिक लदाया हुआ अयस्क ट्रक ग्रामीण समुदायों से गुज़रते समय लौह से भरपूर धूल का गुबार छोड़ जाते हैं, जिसके कारण फसल नष्ट होने के साथ ही आसपास के परिवारों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है⃓कुछ मामलों में, इन समस्याओं के बारे में अपनी बात रखने वाले लोगों को धमकियाँ मिली हैं, उन्हें परेशान किया गया है या शारीरिक रूप से उन पर हमला किया गया है, जबकि सरकारी अधिकारी उनकी समस्याओं का समाधान करने में विफल रहे हैं⃓

ह्यूमन राइट वॉच का कहना है कि खनन उद्योग की ये तथा अन्य मानवाधिकार संबंधी समस्याएँ दूरदर्शिता और विनियमन के मामले में सरकार की जड़ तक गहरी विफलताओं से जुड़ी हुई हैं⃓कुछ प्रमुख विनियामक सुरक्षा मानक खराब डिज़ाइन के कारण विफल हो जाते हैं⃓लेकिन अनेक मामलों में, ह्यूमन राइट वॉच को पता चला कि क्रियान्वयन इतना बेकार है कि उसके कारण अपेक्षाकृत अच्छे कानून भी निष्प्रभावी हो जाते हैं⃓

गांगुली (Ganguly) ने बताया, “खनन घोटाले अखबार की सुर्खियों में आ सकते हैं, लेकिन भारत की खनन समस्याओं के मूल कारण अधिक बुनियादी हैं⃓” “कानून को लागू करने या खनन संचालकों द्वारा उनके अनुपालन की निगरानी करने में सरकार की विफलता के कारण अराजकता को बढ़ावा मिला है⃓”
 

कई अन्य देशों की तरह ही, भारतीय कानून भी, मुख्य रूप से खनन संचालनों के पर्यावरणीय प्रभावों को समाप्त करने के लिए डिज़ाइन किए गए विनियामक ढांचे में मूल मानवाधिकार सुरक्षा मानकों को अटपटे तरीके से शामिल करता है⃓यह निरीक्षण और प्रवर्तन का अधिकांश उत्तरदायित्व भारतीय पर्यावरण और वन मंत्रालय पर डाल देता है⃓

ह्यूमन राइट वॉच का कहना है कि सरकार के पास मौजूदा विनियामक ढांचे की गंभीर त्रुटियों को सुधारने के पर्याप्त अधिकार है⃓उदाहरण के लिए, सरकार किसी प्रस्तावित खनन परियोजना के संभावित पर्यावरणीय, सामाजिक और मानवाधिकार संबंधी प्रभावों के आकलन हेतु उपयोग होने वाले “स्वतंत्र” पर्यावरणीय प्रभाव आकलनों के विश्लेषण और उन्हें तैयार करने के लिए खनन कंपनियों पर भरोसा करती है⃓इस कारण अवांछित रूप से हितों का अंतर्विरोध उत्पन्न होता है, जिसे दूर करने के लिए उन अध्ययनों के विश्लेषण में विनियामकों को प्रमुख भूमिका प्रदान की जा सकती है⃓आकलन मानवाधिकार संबंधी समस्याओं के प्रति कुछ लचीले भी होते हैं, और इनका ध्यान पूर्ण रूप से पर्यावरण संबंधी समस्याओं पर होता है⃓

ह्यूमन राइट वॉच को पता चला कि प्रवर्तन और भी बड़ी समस्या है⃓विनियामक संस्थान निराशाजनक रूप से अत्यधिक कार्यभार से दबे हुए हैं⃓केंद्र सरकार के कुछ दर्जन अधिकारियों को भारत के प्रत्येक खदान – और कई अन्य उद्योगों के पर्यावरणीय और मानवाधिकार संबंधी प्रभावों पर नज़र रखने का कार्यभार सौंपा गया है⃓इस कारण कार्यस्थल का निरीक्षण व्यावहारिक रूप से असंभव हो जाता है, जिससे सरकार को लगभग पूरी तरह खदान संचालकों द्वारा प्रदान की गई जानकारी पर निर्भर रहना पड़ता है⃓अनेक राज्य सरकारों की निरीक्षण इकाइयों के पास अपने चुनौतीपूर्ण आदेशों को लागू करने के लिए भी अपर्याप्त क्षमता है⃓परिणामस्वरूप, सरकारी विनियामकों को इस बात का कोई अनुमान नहीं है कि कितनी खनन फ़र्म कानून का पालन कर रही हैं या अवैध कार्यों के कारण कितने समुदायों को नुकसान पहुँचा है⃓

मिलती जुलती समस्याएँ नये खनन संचालन की स्वीकृति की प्रक्रिया को व्याप्त करता है⃓किसी परियोजना को जारी रखने की अनुमति देने के निर्धारण के लिए विनियामक अक्सर पूरी तरह से खनन फ़र्म द्वारा प्रदान किए गए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन पर निर्भर करते हैं⃓कार्यस्थल का दौरा नहीं के बराबर होता है और परियोजनाओं पर विचार करके उन्हें इतनी तेज़ी से स्वीकृति दे दी जाती है कि पर्यावरणीय प्रभाव संबंधी रिपोर्ट के निष्कर्षों की पूरी छानबीन का समय ही नहीं मिल पाता⃓

हालांकि साक्ष्यों से पता चलता है कि वे रिपोर्ट अक्सर गलत और जानबूझ कर दी गई भ्रामक जानकारी से भरी होती हैं⃓इस ढांचे के अंतर्गत, नई खनन और अन्य औद्योगिक परियोजनाओं की स्वीकृति को लगभग कभी भी अस्वीकार नहीं किया जाता⃓संभव है कि वर्तमान में संचालित अनेक खदानों को आसपास के समुदायों पर संभावित नुकसान के बारे में दी गई गलत जानकारी के आधार पर आगे बढ़ने की स्वीकृति दी गई हो⃓

केंद्र सरकार ने निरीक्षण को सुधारने के लिए परीक्षण के रूप में कुछ कदम उठाए हैं – जैसे पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के निष्पादन के लिए कंपनियों को मान्यता प्राप्त फ़र्म की सूची से चुनाव करना⃓लेकिन सुधार बहुत आगे तक नहीं जा सके हैं⃓ह्यूमन राइट वॉच ने सबसे महत्वपूर्ण विनियामक त्रुटियों में से कुछ को समाप्त करने के लिए सरकार से अनेक तथ्यात्मक नीति सुझावों को स्वीकार करने का आग्रह किया है⃓

गांगुली (Ganguly) का कहना है, “खनन भारत की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उद्योग को स्वयं अपने नियम बनाने की छूट दे दी जाए⃓” “सरकार विनियामकों को आज की तुलना में अधिक प्रभावी तरीके से अपना काम करने के लिए सशक्त बना सकती है और उसे ऐसा करना चाहिए⃓” 

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